Poem on Basant Panchami in Hindi : दोस्तों आज हमने बसंत पंचमी पर कविता कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 & 12 के विद्यार्थियों के लिए लिखा है।
सर्दियों के बाद बसंत ऋतू का आगमन होता है इस ऋतु में मौसम सुहावना होता है और इस ऋतु की शुरुआत मां सरस्वती की पूजा करके की जाती है।
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विषय-सूची
Best Poem on Basant Panchami in Hindi
सब का हृदय खिल-खिल जाए,
मस्ती में सब गाए गीत मल्हार।
नाचे गाए सब मन बहलाए,
जब बसंत अपने रंग-बिरंगे रंग दिखाएं।।
खिलकर फूल गुलाब यूँ इठलाए,
चारों ओर मंद-मंद खुशबू फैलाए।
प्रकृति भी नए-नए रूप दिखाएं,
जब बसंत अपने रंग-बिरंगे रंग दिखाएं।।
सूरज की लाली सबको भाए,
देख बसंत वृक्ष भी शाखा लहराए।
खुला नीला आसमां सबके मन को हर्षाये,
जब बसंत अपने रंग-बिरंगे रंग दिखाएं।।
नई उमंग लेकर नदियां भी बहती जाए,
चारों ओर हरियाली ही हरियाली छाए।
शीत ऋतु भी छूमंतर हो जाए,
जब बसंत अपने रंग-बिरंगे रंग दिखाएं।।
– नरेंद्र वर्मा
Basant Panchami Par Kavita
मन में हरियाली सी आई,
फूलों ने जब गंध उड़ाई।
भागी ठंडी देर सवेर,
अब ऋतू बसंत है आई।।
कोयल गाती कुहू कुहू,
भंवरे करते हैं गुंजार।
रंग बिरंगी रंगों वाली,
तितलियों की मौज बहार।।
बाग़ में है चिड़ियों का शोर,
नाच रहा जंगल में मोर।
नाचे गायें जितना पर,
दिल मांगे ‘Once More’।।
होंठों पर मुस्कान सजाकर,
मस्ती में रस प्रेम का घोले।
‘दीप’ बसंत सीखाता हमको,
न किसी से कड़वा बोलें।।
– अज्ञात
Poetry on Basant Panchami
बसंत ऋतू आयी है,
रिश्तो में मिठास है।
खेतों में बहार है,
किसानों के मुख पर मुस्कान है।।
खुला नीला आसमान है,
बह रही है शीतल हवा।
सबका मन प्रसन्न है,
यही बसंत पंचमी का त्यौहार है।।
डाल-डाल पर बैठकर,
पंछी नए गीत गा रहे है।
खिल रहे है फूल रंग बिरंगे,
जैसे हो रहा हो धरती का नया जन्म।।
आशाओं को नई उम्मीद लगी है,
पेड़ो ने भी बाह फैला कर स्वागत किया है।
सर्दी हो गयी ना जाने कहा गुम,
अब सुहावना मौसम आया है,
अब बसंत ऋतू आयी है।।
– नरेंद्र वर्मा
Long Poem on Basant Ritu in Hindi
आओ, आओ फिर, मेरे बसन्त की परी–
छवि-विभावरी,
सिहरो, स्वर से भर भर, अम्बर की सुन्दरी-
छवि-विभावरी।
बहे फिर चपल ध्वनि-कलकल तरंग,
तरल मुक्त नव नव छल के प्रसंग,
पूरित-परिमल निर्मल सजल-अंग,
शीतल-मुख मेरे तट की निस्तल निझरी–
छवि-विभावरी।
निर्जन ज्योत्स्नाचुम्बित वन सघन,
सहज समीरण, कली निरावरण
आलिंगन दे उभार दे मन,
तिरे नृत्य करती मेरी छोटी सी तरी–
छवि-विभावरी।
आई है फिर मेरी ’बेला’ की वह बेला
’जुही की कली’ की प्रियतम से परिणय-हेला,
तुमसे मेरी निर्जन बातें–सुमिलन मेला,
कितने भावों से हर जब हो मन पर विहरी–
छवि-विभावरी।
– सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
Short Poem on Basant Panchami in Hindi
रंग बिरंगी फूलों की खिलती पंखुड़ियां,
पेड़ों पर नई फूटती कोपले।
पंख फैलाए उड़ते पंछी,
हो रहा है बसंत का आगमन।।
भोर होते ही निकला है सूरज,
भंवरे भी फूलों पर मंडराए।
मधु ने भी फूलों का रसपान किया,
हो रहा है बसंत का आगमन।।
कोयल ने नई कुक बजाई,
मोर ने दिखाया नाच अनोखा।
नीले आसमां पर पंख खोलकर बाज मंडराया,
हो रहा है बसंत का आगमन।।
खेतों में पीली चादर लहराई,
सबके घर में खुशियां भर भर के आयी।
जो सबके दिल को भायी,
वही बसंत ऋतु कहलायी।।
– नरेंद्र वर्मा
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