Poem on River in Hindi : दोस्तों आज हमने नदी पर कविता कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 & 12 के विद्यार्थियों के लिए लिखा है।
नदियां हमारे जीवन के लिए बहुत आवश्यक है इन के बिना जीवन की संभावना नहीं है इसलिए हमें नदियों को साफ रखना चाहिए।
Get Some Latest Poem on River in Hindi for Class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 & 12.
विषय-सूची
Best Poem on River in Hindi
मैं नदी हूं
हिमालय की गोद से बहती हूं
तोड़कर पहाड़ों को अपने साहस से
सरल भाव से बहती हूं।
लेकर चलती हूं मैं सबको साथ
चाहे कंकड़ हो चाहे झाड़
बंजर को भी उपजाऊ बना दू
ऐसी हूं मैं नदी।
बिछड़ों को मैं मिलाती
प्यासे की प्यास में बुझाती
कल-कल करके में बहती
सुर ताल लगाकर संगीत बजाती।
कहीं पर गहरी तो कहीं पर उथली हो जाती
ना कोई रोक पाया ना कोई टोक पाया
मैं तो अपने मन से अविरल बहती
मैं नदी हूं।
मैं नदी हूं
सब सहती चाहे आंधी हो या तूफान
चाहे शीत और चाहे गर्मी
कभी ना रूकती, कभी ना थकती
मैं नदी सारे जहां में बहती।
– नरेंद्र वर्मा
Nadi Par Kavita
नील नभ का नीर
जब नदी में जाकर मिल गया
नदी का तो रंग ही
उस नीर रंग से खिल गया।
अब रवि भी ढक गया
जलद की चादर में
व्योम भी अब झुक गया
सरिता की आदर में।
धड़कने भी धरा की
सहसा ही बढ़ गई
नवजीवन जागा धरा में
खुशियां अपार उमड़ पड़ी।
अपनी धार में धरा के
कणों को बहाने लगी
अब हवाओं में सरिता
प्रेम रस मिलाने लगी।
मस्ती से मजे में वो तटनि
पत्थरों से टकराती गई
अपने आंचल को खुशी से
सागर तक लहराते गई।
आगे बहते बहते कई
मित्रों से मुलाकात हुई
अकस्मात ही चंद्र सहित
तारक से भी बात हुई।
मुश्किलें आई हजार
पर नदियां कभी न ये रुकी
लोग आए हजार
पर नदियां कभी न ये रुकी।
– अज्ञात
Hindi Poem on Ganga River
गंगा की बात क्या करूं, गंगा उदास है,
वह झूम रही है खुद से और बदहवास है
ना अब वो रंग रूप है, ना वो मिठास है,
गंगाजली का जल नहीं, अब गंगा के पास है।
बांधों के जाल में कहीं, नहरो के जाल में,
सिर पीट-पीट रो रही, शहरों के जाल में
नाले सता रहे है, पतनाले सता रहे है
खा खा के पान थूकने वाले सता रहे है।
असहाय है, लाचार है, मजबूर है गंगा,
अब हैसियत से अपनी, बहुत दूर है गंगा
आई थी बड़े शौक से, ये घर को छोड़कर,
विष्णु को छोड़कर, के शंकर को छोड़कर।
खोई भी अपने आप में वो कैसी घड़ी थी,
सुनते ही भगीरथी की तरफ दौड़ पड़ी थी
गंगा की क्या बात करूं, गंगा उदास है
वो जूझ रही खुद से और बदहवास है।
मुक्ति का है द्वार, हमेशा खुला है,
काशी गवाह है कि, यहां सत्य तुला है
केवल नदी नहीं है, संस्कार है गंगा
धर्म जाति देश का श्रृंगार है गंगा।
गंगा की क्या बात करूं, गंगा उदास है
जो कुछ भी आज हो रहा है गंगा के साथ है
क्या आप को पता नहीं कि किसका हाथ है
देखे तो आज क्या हुआ गंगा का हाल है।
रहना मुहाल है इसका, जीना मुहाल है
गंगा के पास दर्द है, आवाज नहीं है
मुँह खोलने का कुल में रिवाज नहीं है
गंगा नहीं रहेगी यही हाल रहा तो।
कब तक यहां बहेगी यही हाल रहा तो
कुछ कीजिए उपाय, प्रदूषण भगाइए,
गंगा पर आँच आ रही है
गंगा बचाइये, गंगा बचाइये!!
– अज्ञात
Poems on Rivers in Hindi
नदी ओ नदी
नदी ओ नदी कहां बढ़ चली
जरा तो ठहर पहर दो पहर
नदी ओ नदी कहां बढ़ चली।
क्यों है इतनी तू बेसबर
जरा तो ठहर पहर दो पहर
कोई फूल-बूटा तो हरित हो सके
कोई जीव जरा तो तृप्त हो सके।
जानते है तुझे जाकर मिलना है सागर से
कुछ जल भर तो ले कोई एक गागर से
जा के मिली तुम सागर से मतवाली
उसी में समाकर जीवन गुजारो।
अब जानते हैं नदी हो नदी तुम
मिल कर सागर से सागर ही कहलाओ।
– कविता वर्मा
Hindi Poem on River Pollution
रो रही है गंगा, रो रही
ना जाने क्यों धीरे-धीरे सो रही है
बह तो रही है पर ना जाने
क्यों जहर हो रही है।
बड़े-बड़े मैदानों में दौड़ने वाली
ना जाने क्यों सिकुड़ रही है
प्यास बुझाने वाली गंगा,
आज ना जाने क्यों खुद ही प्यासी है।
गंगा तू क्यों मुख मोड़ रही है,
ना जाने क्यों धीरे-धीरे सो रही है
गूंगी सी हो कर ना जाने क्यों
धीरे-धीरे चुप-चुप सी हो रही है।
संस्कृतियों को अपने रंग में रंगने वाली
ना जाने अब क्यों बेरंग हो रही है
बंजर को उपवन करने वाली
ना जाने क्यों खुद ही जर्जर हो रही है।
बावरी सी होकर ना जाने क्यों
फंस गई है प्लास्टिक, प्रदूषण,
बांधों और नहरो के जाल में
ढूंढ रही है अब खुद ही के किनारे
रो रही है गंगा, रो रही है।
आओ अब एक नई पहल करें गंगा को सजाने में
मिलकर हाथ से हाथ मिलाए गंगा को बचाने में
आओ जगाए सोयी हुई सरकारों को
आओ जगाए सोए हुए लोगों को।
रो रही है गंगा, ना जाने क्यों धीरे-धीरे सो रही है।।
– नरेंद्र वर्मा
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Kavita nadi per for class 7th
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I have also written a short poem on ‘Gangaji’.can I send it..
Dr. Ranjana Sharma ji, Send your poem on this email id- [email protected]