Ras in Hindi : दोस्तों आज हमने रस – परिभाषा, भेद और उदाहरण इसकी पूरी विस्तार पूर्वक जानकारी दी है। रस का शाब्दिक अर्थ आनंद है।
अक्सर विद्यार्थियों को परीक्षाओं में रस के बारे में पूछा जाता है रस हिंदी व्याकरण का एक बड़ा अध्याय है जिसको समझने के लिए ध्यान पूर्वक पढ़ना पड़ता है। इसीलिए विद्यार्थियों की सहायता करने के लिए हमने रस किसे कहते हैं रस के प्रकार और रस के उदाहरण को विस्तार पूर्वक समझाया है।
विषय-सूची
Ras in Hindi Grammar
रस की परिभाषा (Ras ki Paribhasha) –
आचार्य विश्वनाथ के अनुसार वाक्य रसात्मक काव्य अर्थात रसात्मक वाक्य को ही काव्य कहते है। कविता पढ़ने, सुनने या नाटक देखने पर पाठक श्रोता या दर्शक को जो अनुभूति होती है उसे रस कहते है।
भरतमुनि नाट्य शास्त्र में लिखते है–
विभावानुभाव व्यभिचारी शोक आदर्श निष्पत्ति अर्थात विभाव अनुभव और व्यभिचारी (संचारी) भावों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है।
रस के निम्नलिखित तत्व है
(1) स्थायी भाव
(2) विभाव
(3) अनुभाव
(4) संचारी भाव
स्थायी भाव –
मानव हृदय में कुछ भाव स्थाई रूप से विद्यमान रहते हैं इन्हें स्थायी भाव कहते है। यह सभी मनुष्य में उसी प्रकार छिपे रहते हैं जैसे मिट्टी में गंध अविच्छिन्न रूप से समाई रहती है यह इतने समर्थ होते हैं कि अन्य भाव को अपने में विलीन कर लेते है।
स्थाई भाव की संख्या 9 है
रस | स्थायी भाव |
श्रृंगार | रति |
हास्य | हास |
करुण | शौक |
रोद्र | क्रोध |
वीर | उत्साह |
भयानक | भय |
वीभत्स | घृणा, जुगुठसा |
अद्भुत | आश्चर्य, विस्मय |
शांत | निर्वेद, वैराग्य |
विभाव – रसो को उत्पन्न करने वाले कारण को ही विभाव कहते हैं यह रस की उत्पत्ति में आधारभूत माने जाते हैं।
विभाव के दो भेद होते हैं –
(1) आलंबन विभाव
(2) उद्दीपन विभाव
आलंबन विभाव – भाव का उद्गम जिस मुख्य भाव या वस्तु के कारण हो, वह काव्य का आलंबन कहा जाता है।
- विषय – जिस पात्र (नायक/नायिका) के लिए किसी पत्र के भाव जागृत होते हैं वह पात्र (नायक/नायिका) का विषय कहलाता है।
- आश्रय – जिस पात्र में भाव जागृत होते हैं वह आश्रय कहलाता है।
उद्दीपन विभाव – स्थाई भाव को जागृत रखने में सहायक कारण उद्दीपन विभाव कहलाते है।
उदाहरण –
अखिल – भुवन चर-अचर जग हरि मुख में लक्ष्मी माता चकित भाई गदगद वचन विकसित दृढ़ पुलकातु।
रस- अद्भुत रस, स्थाई भाव- विस्मय
आलंबन (विषय) – कृष्ण का मुख , आश्रय- माता यशोदा
उद्दीपन – मुख में अखिल भवनों और चराचर प्राणियों का दिखाई देना
अनुभाव :-
मनोगत भाव को व्यक्त करने वाली शारीरिक और मानसिक चेष्टाए अनुभाव कहलाती है। अनुभाव भावों के बाद उत्पन्न होते हैं इसलिए इन्हें अनु – भाव अर्थात भावो का अनुसरण करने वाले कहते है।
अनुभाव के प्रकार –
- आंगिक – आश्रय की शरीर संबंधी चेष्टाए आंगिक या कायिक एक अनुभाव है।
- वाचिक – भाव के जागृत होने पर भू-विक्षेप, कटाक्ष आदि प्रयत्न पूर्वक किए गए वाग़व्यापार आवाज करना वाचिक अनुभाव है।
- आहार्य – आरोपित या कृत्रिम वेघ – रचना (दूसरा रूप धारण करना) आहार्य अनुभाव है।
- सात्विक – स्थायी भाव के जागृत होने पर स्वाभाविक एक कृत्रिम ए टी एच अंग विकार को सात्विक अनुभाव कहते है। इसके लिए आश्रय को कोई बाहय चेष्टा नहीं करनी पड़ती। यह स्वत: पाठ पादुभुर्त होते है और इन्हें रोका नहीं जा सकता।
सात्विक अनुभाव के आठ भेद है –
- स्तंभ (शरीर में किसी प्रकार की हलचल में होना)।
- स्वेद ( पसीना आना)।
- रोमांच ( शरीर के रोए खड़े होना)।
- स्वरभंग ( उच्चारण में अंतर)।
- कम्प ( कांपना)।
- विवर्णता ( चेहरे का रंग जाना)।
- अश्रु ( आंसू आना)।
- प्रलय ( चेतना शून्य हो जाना / बेहोश होना)।
संचारी या व्यभिचारीभाव :- जो भाव केवल थोड़ी देर के लिए स्थाई भाव को पोस्ट करने के निमित्त सहायक रूप में आते हैं और तुरंत लुप्त हो जाते हैं वह संचारी भाव कहलाते हैं।
संचारी शब्द का अर्थ है साथ-साथ चलना अर्थात संचरणशील होना, संचारी भाव स्थायी भाव के साथ संचरित होते हैं। इनमें इतना सामर्थ्य होता है कि यह प्रत्येक स्थायी भाव के साथ उसके अनुकूल बनकर चल सकते हैं इसलिए इन्हें व्यभिचारी भाव भी कहा जाता है।
संचारी या व्यभिचारी भावों की संख्या 33 मानी गई है –
- हर्ष
- चिंता
- गर्व
- जड़ता
- बिबोध
- स्मृति
- व्याधि (बीमारी)
- विशाद
- शंका
- उत्सुकता
- आवेग
- श्रम (मेहनत)
- मद ( नशा)
- मरण
- त्रास (कष्ट, तकलीफ)
- असूया (इर्ष्या)
- उग्रता
- धृति (संकल्प)
- निंद्रा
- अवहित्था (भाव का छिपाना)
- ग्लानि (खेद, पश्चाताप)
- मोह
- दीनता
- मति ( बुद्धि)
- स्वप्न
- अपस्मार (मिर्गी)
- निर्वेद (विरक्ति)
- आलस्य
- उन्माद ( पागलपन)
- लज्जा
- अमर्श (असहनशीलता)
- चापल्य (चपलता)
- दैन्य
- सन्त्रास
- औत्सुक्य (उत्सुकता)
- चित्रा
- वितर्क
Ras Kitne Prakar ke Hote Hain
हिन्दी में रस की संख्या नौ हैं – वात्सल्य रस को दसवाँ एवं भक्ति रस को ग्यारहवाँ रस भी माना गया है। मानव जीवन में होने वाली घटनाओं के रूप कोई रसों का नाम दिया गया है इनमें अलग-अलग घटनाएं अलग-अलग रस के अंतर्गत आती है।
नीचे हमने सभी 11 रसों का वर्णन उदाहरण सहित किया है।
शृंगार रस :-
नायक और नायिका के मन में संस्कार रूप में स्थित रति या प्रेम जब रस की अवस्था में पहुंच जाता है तो वह श्रृंगार रस कहलाता है।
श्रृंगार रस को रसराज या रस्पति कहा गया है इसका स्थायी भाव रति होता है।
इसके अंतर्गत नायिका लंकार, सौंदर्य, प्रकृति, सुंदरवन, वसंत ऋतु, पक्षियों का चहचाना (प्रकृति का भी वर्णन) आदि के बारे में वर्णन किया जाता है।
श्रृंगार रस के दो भेद होते हैं
संयोग श्रृंगार रस
वियोग श्रृंगार रस
उदाहरण –
बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय।
सौंह करै भौंहनि हँसै, दैन कहै नहि जाय।
स्थायीभाव – रति
आलंबन – कृष्ण
आश्रय – गोपियां
उद्दीपन – बतरस लालच
अनुभाव – बांसुरी छुपाना, भोहो से हंसना, मना करना
संचारी भाव – हर्ष, उत्साह, उत्सुकता, चपलता आदि
हास्य रस –
जहां किसी विचित्र स्थितियों या परिस्थितियों के कारण हास्य की उत्पत्ति होती है उसे ही हास्य रस कहा जाता है इसका स्थायी भाव हास होता है।
इसके अंतर्गत वेशभूषा, वाणी आदि की विकृति को देख कर मन में विनोद का भाव उत्पन्न होता है वाणी, वेशभूषा, विकृत आकार इत्यादि के कारण मन में हास्य का भाव उत्पन्न होता है उसे हास्य रस कहते है।
उदाहरण – (1) प्रेमियों की शक्ल कुछ-कुछ भूत होनी चाहिए, अक्ल अकी नाम में छ: सूत होनी चाहिए।
(2) इश्क करने के लिए काफी कलेजा ही नहीं, आशिकों की चांद (सिर) भी मजबूत होना चाहिए।
करुण रस –
इस रस में किसी अपने का विनाश या अपने का वियोग द्रव्यनाश एवं प्रेमी से सदैव भी बिछड़ जाने या दूर चले जाने से जो दु:ख या वेदना उत्पन्न होती है। उसे करुण रस कहते हैं। यद्यपि वियोग श्रृंगार रस में भी दु:ख का अनुभव होता है लेकिन वहां पर दूर जाने वाले से पुन: मिलन की आशा जगी रहती है।
इसका स्थायी भाव शौक होता है।
जहां पर पुनः मिलने की आशा समाप्त हो जाती है करुण रस कहलाता है इसमें निस्वास, छाती पीटना, रोना, भूमि पर गिरना आदि का भाव व्यक्त होता है।
उदाहरण –
सीता गई तुम भी चले, मैं भी ना जिऊंगा यहां
सुग्रीव बोले साथ में सब जाएंगे वानर वहां
रही खरकती हाय शूल-सी, पीड़ा उर में दशरथ के।
ग्लानि, त्रास, वेदना – विमण्डित, शाप कथा वे कह न सके।।
वीर रस –
जब युद्ध अथवा कठिन कार्य को करने के लिए मन में जो उत्साह की भावना विकसित होती है उसे ही वीर रस कहते हैं इसका स्थायी भाव उत्साह होता है।
इसमें शत्रु पर विजय प्राप्त करने, यश प्राप्त करने आदि प्रकट होती है जब किसी का भी मैं किसी काव्य में वीरता का वर्णन होता है तो वहां वीर रस होता है।
उदाहरण –
वो खून कहो किस मतलब का जिसमें उबाल का नाम नहीं
वो खून कहो किस मतलब का जिसमें जीवन में रवानी नहीं
रौद्र रस :-
जब किसी एक पक्ष या व्यक्ति द्वारा दूसरे पक्ष या दूसरे व्यक्ति का अपमान करने से जो क्रोध उत्पन्न होता है उसे रौद्र रस कहते हैं इसका स्थायी भाव क्रोध होता है।
इसमें क्रोध के कारण मुख लाल हो जाना, दांत पीसना, शस्त्र चलाना, भौहें चढ़ाना आदि के भाव उत्पन्न होते हैं।
उदाहरण –
उस काल मारे क्रोध के तनु का अपने उनका लगा
मानो हवा के वेग से सोता हुआ सागर जगा
भयानक रस :-
जब किसी भयानक या अनिष्टकारी व्यक्ति या वस्तु को देखने या उससे संबंधित वर्णन करने या किसी अनिष्टकारी घटना का स्मरण करने से मन में जो व्याकुलता उत्पन्न होता है उसे भय कहते हैं उस भय के उत्पन्न होने से जिस रस की उत्पत्ति होती है उसे भयानक रस कहते है।
इसका स्थायी भाव भय होता है।
इसके अंतर्गत कंपन, पसीना छुटना, मुंह सूखना, चिंता आदि के भाव उत्पन्न होते हैं।
उदाहरण –
हाहाकार हुआ क्रंदन भय कठिन बज्र होते थे चून।
हुए दिगंत बधिर भीषण रव बार होना यहा क्रूर।
वीभत्स रस :-
घृणित वस्तुओं, घृणित चीजो, घृणित व्यक्ति को देखकर या उनके संबंध में विचार करके या उनके संबंध में सुनकर मन में उत्पन्न होने वाली घृणा या ग्लानी ही वीभत्स रस कहलाती है।
इसका स्थाई भाव जुगुप्सा होता है।
युद्ध के पश्चात चारों और शव बिखरे हो, अंग आदि कटकर गिरे हो, गिद्ध और कौवे शव को नाच रहे हो।
उदाहरण –
आँखे निकाल उड़ जाते, क्षण भर उड़ कर आ जाते
शव जीभ खींचकर कौवे, चुभला-चभला कर खाते
भोजन में श्वान लगे मुरदे थे भू पर लेटे
खा माँस चाट लेते थे, चटनी सैम बहते बहते बेटे
अद्भुत रस :-
जब व्यक्ति के मन में विचित्र अथवा आश्चर्यजनक वस्तुओं को देखकर जो विस्मय के भाव उत्पन्न होते हैं उसे ही अद्भुत रस कहा जाता है इसका स्थायी भाव आश्चर्य होता है।
इसके अंदर रोमांच, आंसू आना, कांपना, गदगद होना, आंखें फाड़ कर देखना आदि के भाव व्यक्त होते है।
उदाहरण –
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु बानी बकता बड़ जोगी॥
बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना।
कर बिनु करम करइ बिधि नाना॥
शांत रस :-
इस रस में तत्व ज्ञान की प्राप्ति अथवा संसार से वैराग्य होने पर परमात्मा के वास्तविक रूप का ज्ञान होने पर परमात्मा मन को जो शांति मिलती है, वहां शांत रस की उत्पत्ति होती है। जहां न दु:ख होता है, ना द्वेष होता है, मन सांसारिक कार्यों से मुक्त हो जाता है, मनुष्य वैराग्य प्राप्त कर लेता है शांत रस कहा जाता है।
इसका स्थायी भाव निर्वेद (उदासीनता) होता है।
उदाहरण –
मन पछितैहै अवसर बीते।
दुर्लभ देह पाइ हरिपद भजु,
करम, बचन अरु हीते॥१॥
वात्सल्य रस :-
माता का पुत्र के प्रति प्रेम, बड़ों का बच्चों के प्रति प्रेम, गुरु का शिष्य के प्रति प्रेम, बड़े भाई का छोटे भाई के प्रति प्रेम आदि का भाव इसने कहलाता है यही स्नेह का भाव परिपुष्ट होकर वात्सल्य रस कहलाता है।
इसका स्थायी भाव वात्सल्यता (अनुराग) होता है।
उदाहरण –
उठो लाल अब आंखें खोलो
पानी लाई हूं मुंह धो लो
जसोदा हरि पालनैं झुलावै।
हलरावै, दुलराइ मल्हावै, जोइ-जोइ कछु गावै॥
भक्ति रस :-
इस रस में ईश्वर की अनुरक्ति और अनुराग का वर्णन होता है अर्थात जिस काव्य में ईश्वर के प्रति प्रेम का वर्णन किया जाता है भक्ति रस कहलाता है।
इसका स्थायी भाव देव रति है।
उदाहरण –
जनकसुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की॥
ताके जुग पद कमल मनावउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ॥4॥
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