रेल यात्रा पर निबंध – Rail Yatra Essay in Hindi

🔥 Join Telegram groupJoin Now

Rail Yatra Essay in Hindi आज हम भारत के रेल यात्रा पर निबंध हिंदी में लिखने वाले हैं. Rail Yatra पर निबंध कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए है. इस निबंध को हमने अलग-अलग शब्द सीमा में लिखा है जिससे अनुच्छेद और निबंध लिखने वाले विद्यार्थियों को कोई भी परेशानी नहीं हो और वह रेल यात्रा के बारे में अपनी परीक्षा में लिख सकेंगे.

Meri Paheli Rail Yatra Essay in Hindi

यात्रा चाहे किसी भी प्रकार की हो चाहे वो बस, रेल, हवाई जहाज, पानी का जहाज, सभी आनंददाई होती है. यात्रा करने से हमें नई नहीं जाए देखने को मिलती है साथ ही अनेकों विचारों वाले लोगों से भी मिलने का मौका मिलता है.

हमें भारत में यात्रा करते समय हर दूसरे शहर में नई संस्कृति देखने को मिलती है शायद यात्रा करने का यही सबसे आनंद पल होता है कि हमें तरह तरह के लोग, प्रकृति और संस्कृति देखने को मिलती है.

Rail Yatra Essay in Hindi

Rail Yatra Essay in Hindi 1600 words


मेरी पहली रेल यात्रा मैंने बचपन में की थी तब मैं कक्षा 6 में पढ़ता था. मुझे सही से तो याद नहीं लेकिन उस समय फरवरी का महीना था और सर्दियां बहुत पड़ रही थी. मेरे स्कूल की 10 दिनों की छुट्टियां पड़ी थी इसलिए पिताजी ने मुझे बिना कुछ बताए वैष्णो देवी जाने का प्लान बना लिया था.

जब मैं दोस्तों के साथ खेल कर शाम को घर लौट कर आया तो मां ने बताया कि कल हम मां वैष्णो देवी के दर्शन करने जा रहे है. यह सुनकर मैं बहुत खुश हो गया क्योंकि हम काफी समय बाद कहीं पर घूमने जा रहे थे. मैं उस समय इतना खुश था कि खुशी के मारे मैं इधर-उधर कूद रहा था.

थोड़ी देर बाद मन शांत हुआ तो मैंने मां कोतूहल वश पूछा कि हम वैष्णो देवी कैसे जाएंगे तुमने कहा कि हम वैष्णो देवी “रेल” से जाएंगे. यह सुनकर तो मैं और खुश हो गया क्योंकि मैंने पहले कभी रेल से सफर नहीं किया था. बस किताबों और TV पर ही रेल को चलते देखा था.

मां ने शाम को ही सारे सामान की पैकिंग कर ली थी. ट्रेन रात के 3:00 बजे की थी. मां ने कहा तुम जाकर सो जाओ लेकिन मुझे नींद कहां आने वाली थी मैं पूरी रात भर यही सोच रहा था कि रेल का सफर कैसा होगा. जैसे-तैसे रात के 2:00 बजे और मां ने मुझे उठाया और कहा कि तैयार हो जाओ रेलवे स्टेशन जाना है.

मैं हाथ मुंह धो कर तैयार हो गया और पिताजी घर के बाहर टैक्सी बुला ली. घर के बाहर निकलें तो देखा कि सर्दी बहुत थी और कोहरा छाया हुआ था. हम टैक्सी में बैठ कर करीब 2:30 बजे दिल्ली स्टेशन पहुंचे. पिताजी ने पहले ही ट्रेन की टिकट बुक करा ली थी.

हमारा ट्रेन का सफर बहुत लंबा होने वाला था क्योंकि हमें जयपुर से वैष्णो देवी जाना था. स्टेशन पहुंचने के बाद हम प्लेटफॉर्म पर बैठे हुए थे वहां पर मैंने देखा कि एक ट्रेन आ रही थी तो एक ट्रेन जा रही थी. वहां पर लोगों की बहुत ज्यादा भीड़ थी. रेल की सीटी इतनी जोरदार थी कि उसको 5 किलोमीटर दूर तक सुना जा सकता था.

कुछ समय बाद क्या समय पर हमारी ट्रेन स्टेशन पर आ चुकी थी. पिताजी ने कुली से हमारा सामान ट्रेन के डिब्बे में रखवा दिया. फिर हम सभी ट्रेन के एक वातानुकूलित डिब्बे में जाकर बैठ गए वहां पर मैंने देखा कि बैठने के लिए बड़ी-बड़ी आरामदायक सीटें थी और ट्रेन का डिब्बा एक कमरे की तरह बड़ा था.

ट्रेन में सभी प्रकार की सुविधाएं थी गर्मियों के लिए ऐसी और पंखे की सुविधा थी तो सर्दियों के लिए हीटर की भी सुविधा थी. रेल के डिब्बे रोशनी की सुविधा के लिए कई लाइटें लगाई हुई थी. मुझे ऐसा लगा था कि मानो मैं किसी कमरे में बैठा हूं.

मैंने पहले कभी ट्रेन से यात्रा नहीं की थी इसलिए यह मुझे बहुत ही अलग लग रहा था क्योंकि इतनी आरामदायक और खुली सीटें मुझे कभी देखने को नहीं मिली थी.

Get Essay on Rail Yatra in Hindi for class 1 to 12 students.

कुछ देर तक हम ट्रेन में बैठे रहे. मैं ट्रेन की खिड़की से बाहर झांक रहा था मैंने देखा कि एक आदमी काला कोट पहने ट्रेन को हरी झंडी दिखा रहा है. अब मैंने कोतूहल वश पिताजी से पूछा कि वह आदमी ट्रेन को हरी झंडी क्यों दिखा रहे हैं तो पिताजी ने कहा कि यह ट्रेन के ड्राइवर को ट्रेन चलाने का संकेत है उसी समय ट्रेन धीरे धीरे चलने लगी और ट्रेन से बहुत तेज सिटी की आवाज भी आ रही थी.

Train ने धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ी और ट्रेन कोहरे को चीरते हुए आगे बढ़ने लगी. कुछ समय तक तो शहर की चकाचौंध देखने को मिलती रहेगी लेकिन कुछ समय बाद केवल अंधेरा छा गया क्योंकि कोहरा बहुत ज्यादा था इसलिए बाहर कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था.

हम सब बात करने लगे वहां पर कुछ अन्य यात्री भी थे जो हमसे बातें कर रहे थे कुछ यात्री मेरी पढ़ाई के बारे में बातें कर रहे थे तो कुछ कह रहे थे कि कहां घूमने जा रहे हो. थोड़ी देर तक इधर उधर की बातें चलती रही फिर सभी को नींद आने लगी तो सभी अपनी-अपनी सीटों पर जाकर सो गए.

मैंने भी कंबल ओढ़ी और सो गया. लगभग 3 से 4 घंटे के बाद मुझे तरह तरह की आवाजें सुनाई दे रही थी मैंने कंबल से बाहर निकाला तो देखा कि ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी हुई है वह स्टेशन दिल्ली का था. ट्रेन में चाय बेचने वाला जोर-जोर से चाय चाय चिल्ला रहा था. बाहर लोग इधर उधर चीखते-चिल्लाते दौड़ रहे थे कुछ लोग ट्रेन में चढ़ रहे थे तो कुछ उतर रहे थे.

पिताजी ने चाय वाले से हमारे लिए चाय ली और खाने के लिए कुछ बिस्कुट लिए. सर्दियों समय का है इसलिए सभी गर्म-गर्म चाय का लुफ्त उठा रहे थे. स्टेशन पर एक व्यक्ति अखबार और कुछ पत्रिकाएं बेच रहा था पिताजी ने एक अखबार और एक पत्रिका खरीदी ली.

हम सभी अखबार पढ़ते हुए चाय का आनंद ले रहे थे तभी ट्रेन अपने गंतव्य की ओर चल पड़ी. बाहर कोहरा छाया हुआ था इसलिए कुछ दिखाई नहीं दे रहा था कुछ समय बात हमारे डिब्बे में एक व्यक्ति आया जिसने काली टोपी और काला कोट पहना हुआ था वह सभी की टिकट जांच कर रहा था वह ट्रेन का टीटी था.

पिताजी ने उन्हें टिकट दिखाई और भी टिकट देकर धन्यवाद कहते हुए आगे बढ़ गए. Rail तेजी से चल रही थी और अब धीरे-धीरे कोहरा भी कम होने लगा था.

मुझे ट्रेन की खिड़की से सूरज दिखाई दे रहा था यह बहुत ही सुहावना पल था. ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी और ट्रेन के बाहर के नजारे तो देखने लायक थे क्योंकि बाहर खेत-खलियान, बाग-बगीचे और छोटे-छोटे गांव दिखाई दे रहे थे. खेतों में फसलों पर छोटी-छोटी बंदे जमी हुई थी यह दृश्य बहुत ही मनमोहक था.

कुछ देर के बाद यमुना नदी का पुल आया और ट्रेन पुल के ऊपर से जा रही थी. यह पल मेरे लिए बहुत ही खुशी वाला था क्योंकि मैंने पहली बार इतना बड़ा पुल देखा था और इतनी बड़ी नदी. पुल के ऊपर से बहती हुई नदी को देखना मुझे बहुत अच्छा लग रहा था.

दोपहर का समय था ट्रेन एक बड़े स्टेशन पर रुकी और हमें पता चला कि ट्रेन यहां पर 1 घंटे के लिए रुकेगी ताकि सभी लोग भोजन कर सके. हम भी भोजन करने के लिए प्लेटफॉर्म पर आ गए वहां पर चाय, चाट, भोजन आदि की स्टाल लगी हुई थी.

हम सभी हाथ मुंह धो कर खाना खाने बैठ गए. यहां का खाना बहुत स्वादिष्ट था. हम सभी ने पेट भर खाना खाया और फिर प्लेटफार्म पर इधर-उधर घूमने लगे. एक कोने में मैंने देखा कि कुछ बच्चे भीख मांग रहे थे और भूख के मारे उनका बुरा हाल था मैंने पिताजी को कह कर उन्हें भोजन करवाया और वे धन्यवाद कहते हुए हमारी नजरों से ओझल हो गए.

कुछ समय बाद ट्रेन की सीटी बजने लगी और ट्रेन चलने को तैयार थी. हम भी ट्रेन के डिब्बे में बैठ गए. एक के बाद एक नया शहर और नए गांव आ रहे थे गांव के लोग अपना हाथ हिलाकर हमें बाय-बाय कह रहे थे. मैंने भी हाथ हिलाकर उन्हें संकेत दे दिया.

शाम हो रही थी और ट्रेन पहाड़ी क्षेत्र में प्रवेश करने लगी थी सूरज पहाड़ों की ओट में डूब रहा था चारों तरफ लालिमा छाई हुई थी यह बहुत ही सुहावना एंव मनोरम दृश्य था. ऊंचे ऊंचे पहाड़ और उन पर पेड़ पौधों की हरी चादर बिछी देखकर मुझे बहुत ही अच्छा लग रहा था.

रेल जब पहाड़ों में घूम रही थी तो उसका इंजन और आगे के डिब्बे दिखाई दे रहे थे ऐसा लग रहा था कि ट्रेन का इंजन वापस घूमकर हमारी तरफ ही आ रहा है यह देखना बहुत ही रोमांचक था. कुछ समय बाद ट्रेन कटरा स्टेशन पर पहुंच गई थी जहां पर मां वैष्णो देवी का मंदिर स्थित था.

हम सभी ट्रेन से उतर गए और एक टैक्सी में बैठ कर वैष्णो देवी के मंदिर की ओर चल पड़े. टैक्सी ने हमें पहाड़ों के नीचे ही छोड़ दिया. मां विष्णो देवी का मंदिर पहाड़ पर बहुत ऊंचाई पर स्थित है इसलिए पिताजी ने वहां पर जाने के लिए कुछ खच्चर वालों को हमें ऊपर ले जाने के लिए कहा.

उन्होंने हमें खच्चर पर बिठाया और पहाड़ों पर चढाई करने लगे. जैसे जैसे ऊपर जा रहे थे मैंने नीचे की ओर देखा तो बहुत गहरी गहरी खाई बनी हुई थी यह देख कर एक बार तो मैं सहम गया लेकिन खच्चर वाले भैया ने मुझे संभाल लिया.

पहाड़ों के ऊपर से नजारा कुछ और ही था वहां पर प्रकृति बहुत ही सुंदर लग रही थी. पहाड़ों के ऊपर से पूरा कटरा शहर दिखाई दे रहा था वहां पर रंग बिरंगी चमकती लाइटें मन को भा रही थी. लगभग 3 घंटे की चढ़ाई के बाद हम मां वैष्णो देवी के मंदिर में पहुंच गए और वहां पर हमने मां वैष्णो देवी से दर्शन किए.

मैंने पहली बार मां वैष्णो देवी का मंदिर दिखाता है मुझे बहुत ही अच्छा लगा वहां पर चारों ओर रंग बिरंगी लाइट लगी हुई थी और मंदिर रंग-बिरंगे फूलों से सजा हुआ था. भोजन के लिए मां वैष्णो देवी समिति की ओर से भंडारा लगा हुआ था हमने भंडारे में भोजन किया फिर थोड़ी देर पहाड़ों पर इधर-उधर भ्रमण किया.

थोड़ी देर बाद हम वापस नीचे आ गए और अपने घर जाने को तैयार है तो ऐसी थी Meri Paheli Rail Yatra. यह मेरे जीवन का सबसे यादगार पल था जिसे मैं आज तक भुला नहीं पाया.


यह भी पढ़ें –

Mera Gaon Essay in Hindi – मेरा गाँव पर निबंध

गर्मी की छुट्टी पर निबंध – Summer Vacation Essay in Hindi

हम आशा करते है कि हमारे द्वारा Rail Yatra Essay in Hindi पर लिखा गया निबंध आपको पसंद आया होगा। अगर यह लेख आपको पसंद आया है तो अपने दोस्तों और परिवार वालों के साथ शेयर करना ना भूले। इसके बारे में अगर आपका कोई सवाल या सुझाव हो तो हमें कमेंट करके जरूर बताएं।

3 thoughts on “रेल यात्रा पर निबंध – Rail Yatra Essay in Hindi”

Leave a Comment