दोस्तो आज हमने Raksha Bandhan Par Nibandh लिखा है रक्षाबंधन पर निबंध कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, 11, 12 के विद्यार्थियों के लिए है.
Raksha Bandhan की पवित्र त्यौहार पर हमने विद्यार्थियों की सहायता के लिए एक बहुत अच्छा यह मैंने लिखा है जिसकी सहायता से विद्यार्थी परीक्षा में अच्छे अंको से उत्तीर्ण हो सकते है.
रक्षाबंधन भारत के पड़े त्योहारों में से एक है. इस दिन को भाई-बहन के प्रेम का दिन भी कहते है. रक्षाबंधन त्यौहार क्यों मनाया जाता है इसका वर्णन भी हमने इस जीवन में किया है और साथ ही यह भी बताया है कि रक्षाबंधन त्यौहार कैसे मनाया जाता है.
विषय-सूची
Raksha Bandhan Par Nibandh
भारत को अगर त्योहारों का देश कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि भारत में हर दिन कोई न कोई त्यौहार होता है लेकिन कुछ त्यौहार बहुत बड़े होते हैं जो कि पूरे देश के लोग मनाते है.
भारत में मनाए जाने वाले त्यौहार अन्य देशों की तुलना में अनूठे तरीके से और हर्षोल्लास से मनाएं जाते हैं इन त्यौहारों में रक्षाबंधन त्यौहार भी सभी भारतीय लोगों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार है.
रक्षाबंधन एक पवित्र त्यौहार है यह प्यार और उल्लास का त्यौहार है इसे हम रिश्तो का बंधन भी कह सकते है क्योंकि इस दिन सभी लोग अपनों से मिलते है खासकर भाई और बहन. रक्षाबंधन के त्यौहार में एक अनूठा मिठास है जो रिश्तो की कड़वाहट को भुला देता है और आपसी रिश्तो में मिठास घोल देता है.
रक्षाबंधन का त्यौहार श्रावण पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है यह भाई-बहन के प्रेम का त्यौहार है. इस दिन बहन भाई की कलाई पर राखी बांधती (रक्षा सूत्र = पवित्र धागा) है और भाई बहन को रक्षा का वचन देता है. यह त्यौहार मुख्य रूप से भारत में मनाया जाता है. कोई भी रिश्ता नहीं होने पर भी राखी से भाई बहन का रिश्ता निभाने का मौका मिलता है.
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लेकिन अब इसका प्रचलन नेपाल, कनाडा, अमेरिका, मॉरिशस आदि देशो में भी बड़े ही धूमधाम और उल्लास से मनाया जाता है. यह हिंदू धर्म से जुड़ा हुआ त्यौहार है लेकिन वर्तमान में सभी लोग इस त्यौहार को मनाते है.
Raksha Bandhan के त्यौहार को मनाने की परंपरा महाभारत के युग से ही चली आ रही है पुरातन काल में रक्षाबंधन त्यौहार नहीं होता था लेकिन पुरातन काल में एक ही समय पर कुछ ऐसी घटनाएं घटी है जिस कारण इस त्यौहार को मनाया जाता है.
आइए जानते है उन कहानियों को जिनके कारण रक्षाबंधन मनाया जाता है –
श्री कृष्ण और द्रौपदी के रक्षाबंधन की कहानी – Shri Krishna or Draupadi ke Raksha Bandhan ki Story
भगवान श्री कृष्ण को श्रुति नाम की एक काकी (चाची) थी. श्रुति ने शिशुपाल नामक एक विकृत बच्चे को जन्म दिया था ऋषि मुनि यह देखकर चौंक गए फिर उन्होंने विकृत बच्चे के बारे में एक बात बताई उन्होंने कहा कि जिसके भी स्पर्स से यह बच्चा स्वस्थ होगा उसी के हाथों इस बच्चे का वध होगा.
संयोगवश एक दिन श्री कृष्ण अपनी काकी के यहां आए फिर उन्होंने शिशुपाल को दुलार देने के लिए जैसे ही अपनी गोद में उठाया वह स्वस्थ हो गया. यह देखकर श्रुति बहुत खुश हुई लेकिन मन ही मन परेशान भी हो रही थी क्योंकि उसे पता था कि अब श्री कृष्ण के हाथों में मेरे बच्चे का बहुत होगा.
इसलिए वह भगवान श्री कृष्ण से प्रार्थना करने लगी की कुछ भी हो जाए मेरा बच्चा कितनी भी गलती करें आप इस का वध नहीं करेंगे. श्री कृष्ण ने श्रुति का मान रखते हुए वचन दिया कि शिशुपाल कोई भी गलती करें वह उसको माफ कर देंगे. लेकिन इस पर उन्होंने एक शर्त रख दी उन्होंने कहा कि शिशुपाल 100 गलतियां कर सकता है लेकिन जिस दिन 100 गलतियों से अधिक गलती करेगा उस दिन मैं उसका वध कर दूंगा.
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शिशुपाल बड़ा हुआ और वह चेदि नाम के राज्य का राजा बन गया लेकिन राजा बनने के कुछ समय पश्चात ही वह अपनी प्रजा को सताने लगा और वह धीरे-धीरे एक क्रूर राजा बन गया. एक दिन भगवान श्री कृष्ण शिशुपाल के दरबार में गए तो शिशुपाल ने भरे दरबार में उनकी कड़ी निंदा की, संयोगवश उसी दिन शिशुपाल ने सो गलतियों की सीमा को पार कर दिया था.
भगवान श्री कृष्ण बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने अपना सुदर्शन चक्र निकाला और शिशुपाल का वध कर दिया. जब भगवान श्री कृष्ण सुदर्शन चक्र को छोड़ रहे थे तो उनकी अंगुली में चोट लग गई और रक्त का प्रवाह होने लगा. द्रौपदी से रहा नहीं गया और उसने अपनी साड़ी की कोने को फाड़ कर श्री कृष्ण की अंगुली पर बांध दिया.
श्री कृष्ण प्रसन्न होते हुए द्रोपती को बहन का दर्जा देती हुए आभार व्यक्त किया और कहा कि तुमने मेरे कष्ट में मेरा साथ दिया है मैं भी तुम्हारे कष्ट में तुम्हारा साथ दूंगा. इस घटना के कारण रक्षाबंधन का प्रारंभ हुआ. एक दिन कौरवों की राजसभा में जब द्रौपदी का चीर हरण किया जा रहा था तब भगवान श्री कृष्ण ने द्रोपदी को चीर हरण से बचाकर अपना वादा निभाया था. और यह संयोग ही था की उस दिन श्रावण पूर्णिमा का दिन था
उस समय से लेकर अब तक बहन भाई को राखी बांध रही है और भाई भी उनको उनकी रक्षा का वचन दे रहे है.
रानी कर्णावती और हुमायूं के रक्षाबंधन की कहानी – Rani Karnavati or Humayu ke Raksha Bandhan ki Story
मध्यकालीन युग में राजपूतों और मुगलों के बीच बहुत कड़ा संघर्ष चल रहा था सभी पूरे भारत पर विजय पाना चाहते थे. रानी कर्णावती चित्तौड़ के राजा की विधवा थी राजा की मृत्यु के बाद वह चित्तौड़ का राज-काज संभाल रही थी.
लेकिन रानी कर्णावती को यह समझ नहीं आ रहा था कि दुश्मनों से वह अपने राज्य की रक्षा कैसे करें.
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इसलिए रानी कर्णावती ने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपने राज्य की रक्षा करने के लिए बादशाह हुमायूं से मदद मांगी. रानी कर्णावती ने बहुत सोच-विचारकर एक राखी और एक पत्र हुमायूं को भेजा, बादशाह हुमायूं रानी कर्णावती की बात समझ गए और उन्हें अपनी बहन बना लिया और तुरंत अपनी सेना को चित्तौड़ भेजकर रानी कर्णावती के राज्य को सुरक्षा प्रदान कर दी.
संयोगवश उस दिन भी सावन पूर्णिमा का दिन ही था.
राजा बलि और मां लक्ष्मी की कहानी – Raja Bali or Maa Lakshmi ke Raksha Bandhan ki Story
राजा बलि ने भगवान प्रसन्न करने के लिए को खूब यज्ञ और तप किया और अनंत शक्तियां प्राप्त कर ली जिसके बाद राजा बलि ने स्वर्ग पर हमला कर दिया सड़क के राजा इंद्र भी राजा बलि की शक्तियों का सामना नहीं कर पाए इसलिए सभी देवता गण राजा बलि के प्रकोप से बचने के लिए भगवान विष्णु की शरण में गए.
सभी देवताओं ने भगवान विष्णु से अपनी रक्षा करने की प्रार्थना करने लगे तब भगवान विष्णु ने ब्राह्मण का अवतार लिया और राजा बलि के दरबार में पहुंच गए और भिक्षा में राजा बलि से तीन पग भूमि की भिक्षा के रूप में मांगते हैं.
राजा बलि ने भी तीन पग भूमि देने का वचन दिया लेकिन तभी राजा बलि के गुरु शुक्राचार्य ने ब्राह्मण के अवतार में आए विष्णु भगवान को पहचान लिया और राजा बलि को इस बारे में सचेत भी किया लेकिन राजा भी तब तक वचन दे चुके थे और राजा बलि ने अपना वचन निभाते हुए भगवान विष्णु को तीन पग भूमि दान में दे दी.
तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण करके तीन पग में स्वर्ग लोक, पाताल लोक और धरती को नाप लिया. किस तरह से राजा बलि से स्वर्ग पाताल और धरती पर रहने का हक छीन लिया गया और राजा बलि को रहने के लिए रसातल लोक जाना पड़ा.
लेकिन राजा बलि भी हार मानने वालों में से नहीं थे उन्होंने रसातल लोक में भी कड़ी तपस्या करके भगवान विष्णु को प्रसन्न कर लिया और वरदान में यह मांग लिया कि वह (भगवान विष्णु) सदा रसातल लोक में उनकी नजरों के सामने रहेंगे.
इस कारण भगवान विष्णु भी रसातल लोक में रहने लगे जिस कारण मां लक्ष्मी बहुत चिंतित हो गई उन्होंने सोचा कि अगर भगवान विष्णु रसातल लोक में रहेंगे तो वैकुंठ लोक का क्या होगा. मां लक्ष्मी को इस चिंता में डूबे देख नारद जी ने मां लक्ष्मी को एक उपाय सुझाया.
मां लक्ष्मी ने नारद जी की बात मानते हुए रसातल लोग जाकर राजा बलि को राखी बांधी और उनको अपना भाई बना लिया और उपहार स्वरूप मां लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को अपने साथ ले जाने की बात कही,.राजा बलि ने भी
भाई धर्म निभाते हुए मां लक्ष्मी को भगवान विष्णु को अपने साथ ले जाने की अनुमति दे दी.
संयोगवश उस दिन भी श्रावण मास की पूर्णिमा ही थी इसलिए उसी दिन से रक्षाबंधन मनाया जाने लगा.
इंद्र और ब्राह्मणों के रक्षाबंधन की कहानी – Indra or Brahmano ke Raksha Bandhan ki Kahani
यह कथा भविष्य पुराण की है जिसके अनुसार प्राचीन काल में एक बार 12 वर्षों तक देवताओं और असुरों का भयंकर युद्ध होता रहा था देवताओं की शक्तियां कमजोर पड़ने लगी थी तब प्रजापति इंद्र इस समस्या का हल ढूंढने के लिए अपने गुरु बृहस्पति की पास गए और अपनी व्यथा सुनाई.
उस समय इंद्र की पत्नी इंद्राणी भी वहां पर उपस्थित थी वह इंद्र की व्यथा सुनकर बहुत दुखी हुई. तब इंद्र की पत्नी शशिकला ने इस समस्या के हल के लिए ईश्वर से प्रार्थना और तपस्या की. ईश्वर ने प्रसन्न होकर इंद्राणी को एक रक्षासूत्र दिया और कहा कि इसे इंद्र के दाहिने हाथ में ब्राह्मण के माध्यम से बंधवा देना
इंद्राणी में वह रक्षासूत्र इंद्र के दाहिने हाथ में ब्राह्मण के माध्यम से बंधवा दिया. इसके बाद इंद्र को असुरों से युद्ध में विजय प्राप्त हुई. तभी से रक्षाबंधन ब्राह्मणों के माध्यम से मनाया जाने लगा. इस दिन को कुछ लोग ब्राह्मण पूर्णिमा भी कहते है.
रक्षाबंधन कैसे मनाते है – Raksha Bandhan Kaise Manate hain
रक्षाबंधन के पर्व से 2 सप्ताह पहले ही बाजारों में नई-नई रंग बिरंगी राखियां आ जाती है इन राशियों का मूल्य उनकी सजावट के हिसाब से अलग-अलग होता है. बहने भाई को राखी बांधने के लिए बाजारों में बड़े ही हर्षोल्लास से जाती हैं और रंग-बिरंगी राखियों खरीद कर लाती है.
इसके बाद भी मिठाइयों की दुकान पर जाकर भाई का मुंह मीठा कराने के लिए भिन्न भिन्न प्रकार की मिठाइयां खरीदती है. भाई बहनों को राखी के दिन उपहार स्वरूप भेंट देने के लिए बाजारों में से बहन की पसंद के उपाय खरीद कर लाते है.
Raksha Bandhan का त्यौहार भारत में करीब 15 दिनों तक मनाया जाता है. यह त्यौहार 15 दिनों तक इसलिए मनाया जाता है क्योंकि कई भाई-बहन एक दूसरे से बहुत दूर रहते हैं तो वह 15 दिन के अंदर किसी भी दिन राखी का त्यौहार मना सकते है.
रक्षाबंधन वाले दिन सभी लोग सुबह सुबह नए कपड़े पहन कर रक्षाबंधन का त्यौहार मनाने के लिए तैयार हो जाते है बहन पूजा की थाली तैयार करती है शुभ मुहूर्त के अनुसार बहने भाई को पहले तिलक लगाती है फिर राखी बांधती है और उनका मुंह है मिठाइयों से मीठा करवाती है इसके बाद भाई बहन को उपहार स्वरुप भेंट देता है.
यह त्यौहार उन बहनों के लिए बहुत खास होता है जोकि विवाह के पश्चात ससुराल चली जाती है. रक्षाबंधन वाले दिन अपने मायके आकर भाई को राखी बांधती है इसी बहाने वह अपने बचपन की पुरानी यादें ताजा करती है और सभी परिवार वालों से मिल पाती है वे इस दिन बहुत खुश रहती है. भाई बहन का यह प्यार देखकर उस दिन सभी की आंखों में खुशी के आंसू छलक पड़ते है.
रक्षाबंधन के दिन कई बहने देश की रक्षा कर रहे अपने फौजी भाइयों को बॉर्डर पर भी राखी बांधने जाती है और जो बहने किसी कारणवश नहीं जा पाती वह डाक या पार्शल के माध्यम से अपने भाइयों को राखी भेजती है. राखी के पर्व पर भारतीय डाक विभाग भी बहनों की राखियो को भेजने के लिए स्पेशल लिफाफे उपलब्ध कराता है.
चूँकि राखी के त्योहार पर बारिश का मौसम होता है इसलिए डाक विभाग ने स्पेशल लिफाफे भी निकाले हैं जिन पर बारिश का कोई असर नहीं होता है और राखियां खराब नहीं होती है. इन लिफाफों की कीमत महज 5 रुपए होती हैं जिसमें 50 ग्राम तक की राखियां पूरे भारत में कहीं पर भी भेजी जा सकती है.
रक्षाबंधन के त्यौहार पर कई राज्य सरकारों द्वारा जैसे कि राजस्थान सरकार द्वारा सरकारी बसों में महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा का प्रावधान करती है ताकि गरीब भाई बहन भी राखी वाले दिन एक दूसरे से मिल सके.
इस तरह देश के कुछ प्रमुख त्योहारों में से Raksha Bandhan त्यौहार भी मनाया जाता है.
श्रावण पूर्णिमा पर राखी के अलावा कुछ और त्यौहार भी मनाए जाते है कुछ लोग इसी दिन अपनी यद्नोप्वित भी बदलते है इसीलिए इस दिन को जन्धयाल्या पूर्णिमा भी कहते है. इस दिन उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में राधा और किशन की मूर्ति को पालने में रखकर झूला झुलाते है इसलिए इस दिन को झूलन पूर्णिमा भी कहते है.
उत्तर भारत के कुछ राज्यों में इस दिन पर गेहूं के बीज बोए जाते है और इस दिन को कजरी पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है. केरल और महाराष्ट्र के लोग इस दिन को नारली पूर्णिमा बुलाते है और वे समुद्र देव की पूजा करते है.
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