Essay on Durga Puja in Hindi : आज हमने दुर्गा पूजा पर निबंध कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 & 12 के विद्यार्थियों के लिए है।
दुर्गा पूजा का त्यौहार पूरे भारतवर्ष में धूमधाम पूर्वक और उत्साह के साथ मनाया जाता है इस त्यौहार को नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है.
अक्षर विद्यार्थियों को स्कूल में दुर्गा पूजा पर निबंध लिखने को दिया जाता है उनकी सहायता के लिए हमने अलग-अलग शब्द सीमा में निबंध लिखे है.
Get Some Essay on Durga Puja in Hindi for class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 & 12 Students.
विषय-सूची
10 Line Essay on Durga Puja in Hindi
(1) इस त्योहार में मां दुर्गा के नौ रूपों की नौ दिनों तक पूजा अर्चना की जाती है।
(2) हिंदू कैलेंडर के अनुसार अश्विन शुक्ला सप्तमी से लेकर दशमी तक उत्सव का आयोजन किया जाता है।
(3) बंगाल, ओडिशा, असम, बिहार में दुर्गा पूजा का उत्सव प्रमुख रूप से मनाया जाता है।
(4) दुर्गा पूजा के इस त्यौहार को को नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है
(5) मां दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का संहार किया था इसलिए इस दिन को अच्छाई पर बुराई की जीत के रूप में मनाया जाता है।
(6) मां दुर्गा को शक्ति का प्रतीक माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम ने भी रावण का वध करने से पहले मां दुर्गा की पूजा की थी।
(7) मां दुर्गा का यह त्योहार खूब उत्साह है और आनंद के साथ मनाया जाता है।
(8) इस उत्सव के उपलक्ष में संध्या के समय डांडिया, नृत्य, भजन इत्यादि रोचक प्रतियोगिताएं की जाती है।
(9) अंतिम तीन दिनों में माता की विशेष पूजा की जाती है और भजन किए जाते है।
(10) दशमी के दिन पवित्र जलाशयों, नदियों और तालाबों में मां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन कर दिया जाता है।
Durga Puja Par Nibandh 350 Words
भूमिका –
दुर्गा पूजा के त्यौहार का हिंदू धर्म को मानने वाले लोगों के लिए विशेष महत्व है। दुर्गा पूजा का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के उपलक्ष में मनाया जाता है।
त्योहारों से आपस में भाईचारा और सौहार्द की भावना उत्पन्न होती है। मां दुर्गा शक्ति का प्रतीक है इसलिए सभी लोग उनकी पूजा करते है।
दुर्गा पूजा का उत्सव –
दुर्गा पूजा का त्यौहार बड़े ही धूमधाम से दस दिनों तक मनाया जाता है। इस पर्व की महीने भर पहले से ही तैयारियां होनी प्रारंभ हो जाती है।
मां दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का संहार किया था जिस के उपलक्ष में यह त्यौहार मनाया जाता है।
प्रत्येक गांव शेर और गलियों में मां दुर्गा की बड़ी-बड़ी प्रतिमाएं विराजमान की जाती है और उनकी आरती की जाती है कई लोग अपने घरों पर मां दुर्गा की आरती करते है नौ दिनों तक व्रत रखते है।
मां दुर्गा का पंडाल बहुत ही भव्य सजाया जाता है वहां पर रंग बिरंगी फूलों से और तरह-तरह की चमक की लाइटों से इतना अच्छा पंडाल सजाया जाता है कि वह मन को मोहित कर लेता है।
यह त्योहार विशेष रूप से बंगाल उड़ीसा असम राज्यों में मनाया जाता है वहां पर स्कूलों और कॉलेजों की भी विशेष रूप से छुट्टियां कर दी जाती है जिससे विद्यार्थी को धूमधाम से इस उत्सव में भाग लेते है।
उत्तरी राज्यों में इस त्यौहार को नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। मां दुर्गा के त्यौहार के अंतिम 3 दिनों को बहुत खास माना जाता है इसमें पूरे दिन भर भजन, कथा और माता की विशेष पूजा की जाती है।
दशमी के दिन मां दुर्गा की आरती करने के बाद प्रतिमा को पवित्र जलाशयों, नदियों, तालाबों में विसर्जन करने के लिए लेकर जाया जाता है जिसमें पूरे शहर में झांकी निकाली जाती है और लोग ढोल नगाड़ों पर भजन गाते हुए नाचते है।
निष्कर्ष –
त्योहार भारत की विभिन्नता और सांस्कृतिक विविधता को दिखाते है। मां दुर्गा के त्योहार से हमें शिक्षा मिलती है कि बुराई चाहे कितनी भी बड़ी क्यों ना हो उसका अंत अच्छाई से किया जा सकता है।
इसलिए हमें भी हमेशा सत्य के मार्ग पर चलना चाहिए और अपने परिवार और पूरे समाज को साथ लेकर आगे बढ़ना चाहिए।
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प्रस्तावना –
दुर्गा पूजा का त्यौहार हिंदू धर्म को मानने वाले लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण त्यौहार है इस त्यौहार को नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। दुर्गा पूजा का त्योहार स्त्री सम्मान को भी दर्शाता है।
इस पर्व को भारतीय लोगों द्वारा बड़े ही उत्साह और प्रेम पूर्वक मनाया जाता है। इस समय सभी घरों और बाजारों में एक अलग ही रौनक देखने को मिलती है।
मां दुर्गा शक्ति का प्रतीक है इसलिए सभी उनके आगे नतमस्तक होकर उन्हें प्रणाम करते है। इस त्यौहार का आयोजन दस दिनों तक किया जाता है जिसमें दुर्गा पूजा से लेकर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम किए जाते है।
दुर्गा पूजा का इतिहास –
मां दुर्गा को हिमाचल और मेनका की पुत्री माना जाता है, ऐसा माना जाता है कि भगवान भोलेनाथ की पत्नी “सती” के आत्मदाह के बाद मां दुर्गा के अवतार का जन्म हुआ था।
उन्हें सती का दूसरा रूप कहा जाता है। दुर्गा पूजा से जुड़ी कथाओं के अनुसार माता सती ने दुर्गा का अवतार इसलिए दिया था
क्योंकि उस समय महिषासुर नामक असुर ने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करना प्रारंभ कर दिया और इससे देवलोक और पृथ्वी लोक पर हाहाकार मच गया था।
मां दुर्गा महिषासुर नामक राक्षस से दस दिनों तक युद्ध किया और दसवें दिन उसका संहार कर दिया था बहुत भगवान राम ने भी रावण का वध करने से पहले मां दुर्गा की पूजा की थी।
इसी के बाद से मां दुर्गा का त्यौहार मनाया जाने लगा। मां दुर्गा ने महिषासुर से दस दिनों तक युद्ध किया था इसलिए इस त्यौहार का आयोजन नौ दिनों तक मां दुर्गा के अलग-अलग रुपो की पूजा करके दसवें दिन मां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन कर दिया जाता है।
दुर्गा की प्रतिमा –
हमारे भारत देश में विभिन्न संस्कृतियों के लोग रहते है इसलिए सभी राज्यों में मां दुर्गा की अलग-अलग कथाओं के अनुसार उनकी पूजा की जाती है।
इसी विभिन्नता के कारण मां दुर्गा की प्रतिमा में भी सभी जगह अलग-अलग रूपों में विराजमान की जाती है। इस त्यौहार के अवसर पर प्रत्येक शहर गली मोहल्लों में मां दुर्गा की विशालकाय प्रतिमा विराजमान की जाती है।
मान्यताओं के अनुसार कुछ राज्यों में मां दुर्गा की प्रतिमा को भगवान शंकर और दो पुत्रियों लक्ष्मी और सरस्वती के साथ दिखाया जाता है तो कहीं 2 पुत्र गणेश और कार्तिकेय के साथ दिखाया जाता है।
मां दुर्गा की विशाल प्रतिमा में एक विशेष तेज के साथ बहुत सुंदर दिखाई देती है। वह अपने दस हाथों में विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्र लिए हुए दिखाई जाती है।
मां दुर्गा की सवारी सिंह को माना गया है इसलिए उनकी प्रतिमा का एक पैर सिंह पर होता है और दूसरा महिषासुर की छाती पर होता है।
माता दुर्गा के गले में रंग-बिरंगे फूलों की माला सजाई जाती है उनके सर पर सोने का मुकुट लगाया जाता है। मां की प्रतिमा के ऊपर लाल रंग की चुनरी ओढाई जाती है।
दुर्गा पूजा का आयोजन –
मां दुर्गा के त्यौहार का आयोजन बड़े ही उत्साह और श्रद्धा के साथ दस दिनों तक किया जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार अश्विन शुक्ला सप्तमी से लेकर दशमी (विजयादशमी) उत्सव का आयोजन किया जाता है।
नौ दिनों तक चलने वाले इस त्योहार को लगभग पूरे भारत में मनाया जाता है इसकी तैयारियां महीनों पहले से ही की जाने लग जाती है। इन दिनों में विद्यालयों और कॉलेजों की छुट्टियां कर दी जाती है जिसके बारे में विद्यार्थी भी खूब धूमधाम से इस उत्सव को मनाते है।
पहले दिन मां दुर्गा की प्रतिमा को विराजमान किया जाता है फिर नौ दिनों तक माता के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। संध्या की आरती के बाद विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताएं की जाती है जैसे डांडिया डांस, भजन नृत्य इत्यादि का आयोजन किया जाता है जिससे यह त्यौहार और भी रोचक हो जाता है।
माता का पूरा पांडाल तरह-तरह की रंग बिरंगी फूलों और लाइटों से सजा दिया जाता है यह देखने में बहुत ही खूबसूरत लगता है।
इस त्यौहार में माता को रिझाने के लिए स्त्रियां और पुरुष नौ दिनों तक व्रत रखते है। दुर्गा पूजा का यह त्यौहार विशेष रूप से गुजरात, बंगाल, ओडिशा, असम, बिहार में मनाया जाता है लेकिन वर्तमान में यह सभी जगह पर प्रमुख रूप से मनाया जाता है।
नवरात्र के अंतिम तीन दिनों में यह त्यौहार अपने चरम पर होता है सप्तमी अष्टमी और नवमी को माता की विशेष पूजा की जाती है और कुछ स्थानों पर तो बड़े-बड़े मेलों का भी आयोजन किया जाता है।
उत्तरी भारत में नवमी के दिन मां दुर्गा की पूजा करने के बाद कन्याओं को भोजन करवाया जाता है वहां के लोगों का मानना है कि इस दिन मां दुर्गा स्वयं कन्या के रूप में उनके घर आती है और भोजन करती है।
बंगाल में तो इस त्यौहार को इतनी प्रमुखता से मनाया जाता है कि इस के उपलक्ष पर विवाहित पुत्रियों को माता-पिता द्वारा घर बुलाने की प्रथा है।
प्रतिमा विसर्जन –
नवमी की रात मां दुर्गा के पंडाल में विशाल भजन संध्या का आयोजन किया जाता है जिसमें सभी लोग भक्ति और श्रद्धा भाव से हिस्सा लेते हैं और रात भर मां दुर्गा के भजन गाते है।
दशमी के दिन मां दुर्गा की पूजा करने के बाद दुर्गा मां की मूर्तियों को रंग बिरंगे फूलों से सजा कर पूरे शहर और गांव भर में झांकियां निकाली जाती है। झांकियों में लोग खूब नाचते गाते है, गुलाल रंग उड़ाते है, ढोल नगाड़े बजाते हैं सभी इस त्यौहार में शामिल होकर आनंद उठाते है।
बाद में मां दुर्गा की प्रतिमा को पवित्र जलाशयों, तालाब या नदियों में विसर्जित कर दिया जाता है। विसर्जन के समय लाखों की संख्या में लोग हिस्सा लेते है। यह इस त्यौहार का अंतिम क्षण होता है जब सभी लोग भावुक हो जाते है।
मां के विसर्जन के समय सभी लोग उनका आशीर्वाद देते हैं और सुख समृद्धि और खुशियों की कामना करते हैं इसके बाद सभी लोग अपने अपने घर लौट जाते है।
उपसंहार –
भारत में प्रत्येक त्योहार बड़े ही धूमधाम और उत्साह पूर्वक मनाया जाता है। इन त्योहारों से भारतीय लोगों में परस्पर भाईचारे और प्रेम भाव का विस्तार होता है।
साथ ही हमें इन त्योहारों से आदर्श, सत्यता और नैतिकता की शिक्षा भी मिलती है। यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई की विजय का भी प्रतीक है।
मां दुर्गा के इस त्यौहार को स्त्री सम्मान और शक्ति के रूप में भी देखा जाता है। शक्ति पूजा से लोगों में साहस का संचार होता है और भी बुराई के खिलाफ लड़ते है और विजय पाते है।
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