Holika Dahan Story in Hindi : दोस्तों आज हमने होलिका की कहानी पर विद्यार्थियों और अभिभावकों के लिए एक अच्छी और शिक्षाप्रद कहानी लिखी है। होलिका दहन, होली त्योहार का पहला दिन, फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।
इसके अगले दिन रंगों से खेलने की परंपरा है जिसे धुलेंडी, धुलंडी और धूलि आदि नामों से भी जाना जाता है। होली का त्योहार मनाने के पीछे एक पौराणिक कथा जिसको जाना आपके लिए बहुत आवश्यक है।
Full Holika Dahan Story in Hindi
पौराणिक समय में हिरण्यकश्यप नाम का एक राक्षस हुआ करता था वह पूरे संसार पर राज करना चाहता था इसीलिए उसने तपस्या करके ब्रह्राजी से वरदान प्राप्त किया वरदान में ब्रह्मा जी ने उसे अजर अमर रहने का वरदान दिया था।
जिसके बाद से वह अपने आप को ईश्वर के समान मानने लगा था और अपनी प्रजा को ईश्वर की जगह अपनी पूजा करने के लिए कहता था।
उसके डर के मारे उसकी प्रजा उसकी पूजा भी करने लगी थी लेकिन हिरण्यकश्यप का पुत्र जिसका नाम प्रह्लाद था वह हमेशा भगवान विष्णु की पूजा करता था जो कि वह एक राक्षस का पुत्र था।
हिरण्यकश्यप को जब इस बात का पता लगा तो वह बहुत क्रोधित हुआ क्योंकि वह भगवान विष्णु का घोर विरोधी था उसे पता था जब तक भगवान विष्णु की पूजा इस संसार में होती रहेगी तब तक उसको कोई भी भगवान का दर्जा नहीं देगा।
उसने प्रह्लाद से भगवान विष्णु की पूजा बंद कर अपनी पूजा करने का हुक्म दिया लेकिन प्रह्लाद ने अपने पिता की एक नहीं सुनी और विष्णु भक्ति में और ज्यादा लीन होने लगा।
इस कारण हिरण्यकश्यप बहुत ज्यादा क्रोधित हो गया प्रह्लाद विष्णु भगवान की उपासना आराधना करना नहीं छोड़ रहे थे।
जब हिरण्यकश्यप का कोई भी पैंतरा पहलाद पर काम नहीं किया तो अंत में हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन और भक्त प्रह्लाद की बुआ “होलिका” को अपने पुत्र को मारने का आदेश दिया।
हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को ईश्वर से वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती अर्थात वह अग्नि में जल नहीं सकती है। इस वरदान का लाभ उठाने के लिए हिरण्यकश्यप ने बहन से प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठने का आदेश दिया ताकि आग में जलकर प्रह्लाद की मृत्यु हो जाए।
अपने भाई के आदेश का पालन करते हुए होलिका ने प्रह्लाद को अपनी गोद में बिठाया और जाकर जलती हुई आग में बैठ गई लेकिन भक्त प्रह्लाद निरंतर भगवान विष्णु के नाम का जप कर रहे थे।
तब भगवान विष्णु ने चमत्कार दिखाया और होलिका को वरदान मिलने के बावजूद वह उस आग में जलकर राख हो गई और प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ।
इसीलिए कहते हैं कि बुराई चाहे कितनी भी बड़ी क्यों ना हो अच्छाई हमेशा उसे मात दे ही देती है।
निष्कर्ष – होली के त्यौहार को बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाया जाता है। जैसा कि आपने ऊपर होली की कथा में पढ़ा है हमेशा अच्छाई की जीत होती है इसीलिए प्रतीकात्मक रूप में हर वर्ष मार्च के महीने में होली जलाई जाती है।
जिसमें जलती हुई होली में से भगत पहलाद के प्रतीकात्मक लकड़ी को बाहर निकाल लिया जाता है और सभी को बताया जाता है कि हमेशा अच्छाई की जीत होती है।
होलिका हिरण्यकश्यप की बहन और प्रह्लाद की बुआ थी। साथ ही ये महर्षि कश्यप और दिति की कन्या थी।
मान्यता है कि होलिका की आग बुराई को जलाने का प्रतीक है।
होलिका का असली नाम “होलिका” था।
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अजर अमर रहने का वरदान उसे नहीं मिला, उसे मिला। इस स्थिति में उसे कोई नहीं मार सकता, उसे कोई नहीं मार सकता जिसे भर्मा देव ने बनाया था। , न जल में, न पृथ्वी पर, न आकाश में, न घर में, न बाहर, न कोई अस्त्र-शस्त्र, न मानव, न देव, न कोई दानव, न दिन में न रात में, इसलिए भगवान विष्णु ने नरसिंह का अवतार लिया और
नेल द्वारा, शाम को उसके शरीर को अपने घुटनो पर रखकर हिरण्यकश्यप का वध किया