Top 10 Moral Stories in Hindi : दोस्तों इस लेख में हमने 10 सबसे अच्छी सीख देने वाली कहानियां लिखी हैं इन कहानियों को पढ़कर बच्चों में बुद्धि का विकास होगा साथ ही यह कहानियां इतनी मजेदार और रोचक है कि एक बार आप किसी को सुनाने लग जाएंगे तो वह इसी कहानी को सुनता रहेगा।
यह नैतिक कहानियां रोचक और मजेदार होने के साथ-साथ शिक्षावृद्ध भी है। यह Top 10 Moral Stories in Hindi बच्चों के साथ-साथ बड़ों को भी पसंद आने वाली हैं क्योंकि इन कहानियों से हमें जीवन जीने की सीख मिलती है।
यहां पर हमने Short और Long दोनों प्रकार की Stories फोटो के साथ प्रदर्शित की है ताकि बच्चों को पढ़ने में अधिक रूचि आए। यदि आपको यह कहानियां अच्छी लगती हैं तो अपने दोस्तों और परिवार वालों के साथ शेयर करना ना भूले।
विषय-सूची
अंधेर नगरी चौपट राजा – Top 10 Moral Stories in Hindi
एक गुरु और उसके कुछ चेले तपस्या करने हिमालय की ओर जा रहे थे। रास्ते में जब वे थक गए, तो एक नगर में विश्राम करने के लिए रुक गए। सभी को भूख भी लग रही थी। थोड़ी ही देर में चेला बदहवास हालत में दौड़ता-दौड़ता वापस आया।
हाँफते-हाँफते उसने बताया-“ गुरुजी, यह नगर तो बड़ा ही अजीब है। यहाँ तो चारों ओर सन्नाटा है। पूछने पर एक नागरिक ने बताया कि यहाँ लोग दिन में सोते हैं और रात को काम करते हैं क्योंकि नगर के राजा की यही आज्ञा है।”
गुरु जी ने कुछ सोचते हुए आदेश दिया-“ हमें यहाँ एक क्षण भी नहीं रुकना चाहिए। यह मूर्खों की नगरी है। कल सवेरे ही हम लोग यहाँ से प्रस्थान करेंगे।”
रात होते ही नगर में चहल-पहल शुरू हो गई। गुरु के साथ चेले भी नगर घूमने निकल पड़े। वे सभी यह देखकर हैरान हो गए कि वहाँ सभी कुछ एक टके में मिलता है। सोने का कंगन भी एक टके में और पूरी-भाजी भी एक टके में।
एक चेला यह देखकर खुशी से फूला न समाया। उसने गुरु के आदेश कौ अवहेलना कर उसी नगर में रहने का निश्चय किया।
उन्हीं दिनों नगर के राजा ने एक चोर को फाँसी की सज़ा सुनाई। जल्लाद ने देखा कि फाँसी का फंदा तो बड़ा बन गया है और चोर की गरदन पतली है। राजा ने आदेश दिया कि चोर को छोड़ दिया जाए और जिस व्यक्ति की गरदन ठीक बैठे, उसे ही पकड़कर लाया जाए।
राजा के सैनिक मोटे आदमी की तलाश में निकले। ढूँढ़ते-ढूँढ़ते संयोग से चेला सामने आ गया। सैनिक उसे ही पकड़ लाए। चेले ने लाख दुहाई दी कि मैंने कोई अपराध नहीं किया है पर उसकी एक न सुनी गई। गुरु को यह समाचार मिला तो वे दौड़े-दौड़े आए गुरु ने राजा से कहा कि इस समय बहुत शुभ मुहूर्त है।
जो भी फाँसी पर चढ़ेगा वह अगले जन्म में पूरी धरती का राजा बनेगा। यह सुनकर सभी फाँसी पर चढ़ने के लिए उतावला होने लगे। राजा ने कड्ककर ‘कहा-“ यदि इस मुहूर्त में ऐसा ही होगा तो सबसे पहले राजा का अधिकार है।”
यह कहकर वह तुरंत फाँसी पर चढ़ गया। गुरु ने समझदारी से चेले की जान बचाई। चेले ने गुरु के चरणों में पड़कर उनसे अपने किए की माफ़ी माँगी।
सीख – हमेशा गुरु की आज्ञा का पालन करना चाहिए, भी हमेशा हमारे भले के लिए ही सोचते है।
गुरु की आज्ञा – बेस्ट मोरल स्टोरी
गुरु अमरदास जी के अनेक शिष्य थे जिनमें से कई स्वयं को उनका उत्तराधिकारी बनने के योग्य मानते थे। एक दिन
गुरु ने सभी शिष्यों को पास बुलाया और कहा, ‘तुम सभी के एक चबूतरा बनाओ, मैं उसे देखूंगा।’ शिष्यों ने बढ़िया चबूतरे बनाए।
एक सुबह गुरु अमरदास ने चबूतरों का मुआयना किया और कहा कि उन्हें इनमें से कोई भी पसंद नहीं आया। गुरु ने सभी को नया चबूतरा बनाने को कहा। सभी शिष्यों ने फिर चबूतरे बनाए। गुरु ने उन सभी चबूतरों को तोड़ने का आदेश दिया।
कारण बताया कि उन्हें इनमें से |भी कोई चबूतरा पसंद नहीं आया। शिष्यों का धैर्य टूटने लगा। वे आपस में बातें करने लगे कि गुरु बूढ़े होने के कारण ठीक से विचार करने की क्षमता खो बैठे हैं। वे सभी निराश होने लगे। लेकिन गुरु के एक शिष्य रामदास चबूतरा बनाने में जुटे रहे।
जब अन्य शिष्यों ने रामदास को चबूतरा बनाते देखा तो उन्होंने उनसे कहा, तुम क्यों चबूतरा बना रहे हो ? नासमझ गुरु के आदेश का पालन कर तुम क्यों ना समझ पाए जाते हो।
शिष्यों की बात सुनकर रामदास ने कहा भाइयों यदि गुरु नासमझ है तो फिर किसी का भी दिमाग दुरुस्त नहीं कहा जा सकता। अब अगर गुरुदेव सारी उम्र मुझे चबूतरे बनवाते और तुड़वाते रहे तो भी मैं उसे अपना कर्तव्य समझकर करता रहूंगा।
गुरु ने उनसे 70 से अधिक सूत्रे बनवाएं और तुड़वा दिए लेकिन रामदास जी को गुरु की आज्ञा के पालन में तनिक भी अलग से नहीं आया 1 दिन गुरु अमरदास जी आए और रामदास जी को गले लगाकर बोले “तू मेरा सच्चा शिष्य है और गद्दी का वास्तविक अधिकारी है।’
बाद में रामदासजी ने अन्य शिष्यों से कहा, “गुरु के आदेश पर विचार नहीं, अमल किया जाता है। गुरुजनों के तर्कहीन लगने वाले आदेश के अत्यंत गहरे अर्थ हो सकते हैं। हमें हमेशा गुरु से कुछ सीखने के लिए तैयार रहना चाहिए।’
रामदास जी ने अपनी सेवाओं से मानव जाति को धन्य किया।
दो पड़ोसी – Moral stories in hindi
एक गांव में दो पड़ोसी थे। दोनों माली थे। दोनों के पास अपने-अपने बागान थे और वे उनमें तरह-तरह के
फलों के पौधे उगाते थे। यही बागान उनकी जीविका के साधन थे। उनमें से एक पड़ोसी बहुत सख्त था और अपने पौधों की जरूरत से ज्यादा देखभाल करता था।
उसे लगता था कि पौधों की अगर ठीक देखभाल नहीं की गयी तो वे नष्ट हो सकते हैं, लेकिन दूसरा पड़ोसी पौधों कोर प्राकृतिक रूप से विकसित होने देने पर विश्वास करता था। वह पौधों की उतनी हीं देखभाल करता था, जितने कि उन्हें आवश्यकता थी,
लेकिन वह अपने पौधे के तनों और टहनियों को काट-छांट न करके अपनी मनमर्जी दिशा में बढ़ने देता था।
इससे वे स्वाभाविक रूप से विकसित होते थे। एक शाम, बहुत भीषण तूफान आया, जिसमें भारी बारिश हुई। तूफान ने कई पौधों को नष्ट कर दिया।
अगली सुबह, जब सख्त पड़ोसी उठा, तो उसने पाया कि उसके सारे पौधे उखड़ गए और बर्बाद हो गए वही जब दूसरा पड़ोसी उठा तो उसने पाया कि उसके पौधे अभी भी मिट्टी में मजबूती से लगे हुए हैं इतनी तूफान के बावजूद।
रिलैक्स पड़ोसी के पौधे खुद ही चीजों का प्रबंधन करना सीख गए थे इसलिए, इसने अपना काम किया, गहरी जड़ें उगायीं और मिट्टी में अपने लिए जगह बनायी।
इस प्रकार, यह तूफान में भी मजबूती से खड़ा रहा। जबकि, उस सख्त पड़ोसी ने अपने पौधों का जरूरत से ज्यादा ख्याल रखा था, लेकिन शायद वह भूल गया सिखाना कि बुरे समय में खुद का ख्याल कैसे रखते हैं।
संदेश : अभी या बाद में, आपको खुद से ही सबकुछ होगा। जब तक माता- पिता अत्यधिक सख्त होना बंद नहीं करते, तब तक कोई समझ के अनुरूप काम करना नहीं सीख पाता।
चालाक बन्दर और मूर्ख मगरमच्छ – Top 10 Moral Stories in Hindi
किसी नदी के किनारे एक बहुत बड़ा पेड़ था । उस पर एक बन्दर रहता था । उस पेड़ पर बड़े मीठे फल लगते थे । बन्दर उन्हे भरपेट खाता और मौज उड़ाता । वह अकेले ही मजे में दिन गुजार रहा था ।
एक दिन एक मगरमच्छ उस नदी में से पेड़ के नीचे आया । बन्दर के पूछने पर मगरमच्छ ने बताया की वह वहाँ खाने की तलाश में आया है । इस पर बन्दर ने पेड़ से तोड़कर बहुत से मीठे फल मगरमच्छ को खाने के लिए दिए। इस तरह बन्दर और मगरमच्छ में दोस्ती हो गई ।
अब मगरमच्छ हर रोज़ वहाँ आता और दोनों मिलकर खूब फल खाते । बन्दर भी एक दोस्त पाकर बहुत खुश था ।
एक दिन बात-बात मैं मगरमच्छ ने बन्दर को बताया की उसकी एक पत्नी है जो नदी के उस पार उनके घर में रहती है ।
तब बन्दर ने उस दिन बहुत से मीठे फल मगरमच्छ को उसकी पत्नी के लिए साथ ले जाने के लिए दिए । इस तरह मगरमच्छ रोज़ जी भरकर फल खाता और अपनी पत्नी के लिए भी लेकर जाता।
मगरमच्छ की पत्नी को फल खाना तो अच्छा लगता पर पति का देर से घर लौटना पसन्द नहीं था । एक दिन मगर की पत्नी ने मगरमच्छ से कहा कि अगर वह बन्दर रोज-रोज इतने मीठे फल खाता है तो उसका कलेजा कितना मीठा होगा।
मैं उसका कलेजा खाऊँगी। मगरमच्छ ने उसे बहुत समझाया पर वह नहीं मानी । मगरमच्छ दावत के बहाने बन्दर को अपनी पीठ पर बैठाकर अपने घर लाने लगा । नदी बीच में उसने बन्दर को अपनी पत्नी की कलेजे वाली बात बता दी |
इस पर बन्दर ने कहा कि वो तो अपना कलेजा पेड़ पर ही छोड़ आया है । वह उसे हिफाजत से पेड़ पर रखता है। इसलिए उन्हे वापिस जाकर कलेजा लाना पड़ेगा । मगरमच्छ बन्दर को वापिस पैड़ के पास ले गया | बन्दर छलांग मारकर पैड़ पर चढ़ गया।
उसने हँसकर कहा कि- “जाओ मूर्खराजा, घर जाओ और अपनी“पत्नी से कहना कि तुम दुनिया के सबसे बड़े मूर्ख हो । भला कोई भी अपना कलेजा निकालकर अलग रख सकता है ।”
सीख – बन्दर की इस समझदारी से हमे पता चलता है कि मुसीबत के वक्त हमें कभी धैर्य नहीं खोना चाहिए।
बैल और गधा – Long Moral Stories in Hindi
एक समय की बात है. काशी में कई वर्ष साथ रहकर दो पंडितों ने धर्म और शास्त्रों का अध्ययन किया. शिक्षा
पूरी होने के बाद दोनों विद्वान अपने- अपने गांव की ओर चल पड़े. तब यातायात के साधन तो थे नहीं, लोगों को
एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने में कई-कई दिन लग जाते थे.
लोग दिन में चलते थे और रात में विश्राम करते थे ये दोनों पंडित भी ऐसा ही कर रहे थे एक बार दोनों नगर के सबसे धनी व्यक्ति के यहां ठहरे . उसने उनके रहने की व्यवस्था की और फिर अपने लोगों से कहा कि दोनों महानुभावों के भोजन का भी बंदोबस्त किया जाए .
इस बीच, समय पाकर धनी व्यक्ति दोनों के पास पहुंचा और उनसे चर्चा करने लगा. धनी व्यक्ति अनुभवी था. वह जान गया कि दोनों पंडितों में बहुत ज्यादा घमंड है, साथ ही दोनों(एक-दूंसेरे को (मूर्ख समझते हैं. उन्होंने दोनों से अलग- अलग बात कर एक दूसरे के बारे में भी पूछा .
जो जवाब मिले, वो धनी व्यक्ति को दुखी कर गए . उसने मन में विचार किया कि ये दोनों काशी जैसी जगह पर वर्षों अध्ययन करके आए हैं, लेकिन एक-दूसरे का सम्मान करना नहीं सीखा . बहरहाल, भोजन का समय हो गया था.
धनी व्यक्ति ने दोनों को बड़े आदरपूर्वक भोजन कक्ष में बुलाया . एक की थाली में चारा और दूसरे की थाली
में भूसा परोसा . यह देखकर दोनों पंडित आगबबूला हो गए. गुस्से में आकर कहने लगे कि क्या हम जानवर हैं जो यह चारा और भूखा खाएंगे?
धनी होकर तुम हमारा अपमान कर रहे हो. यह लक्ष्मी द्वारा सरस्वती का अपमान है। इस पर उन्होंने बड़ी ही शांति से जवाब दिया- एक को थाली में चारा और दूसरे को भूसा परोसा गया है,
इसमें मेरा कोई कसूर नहीं है जब मैंने आप में से एक से दूसरे के बारे में पूछा था त्तो उसने कहा था कि वह तो बैल है . वहीं दूसरे से पहले के बारे में पूछा था तो उसने कहा था कि वह गधा है दोनों ने ही एक दूसरे को बैल और गधा बताया, तो मैंने उसी हिसाब से चारा और भूखा थाली में परोस दिया.
इतना सुनते ही दोनों ज्ञानियों की आंखें खुल चुकी थीं . उन्हें अपनी गलती का अहसास हो गया था. उन्होंने उनसे क्षमा मांगी, एक-दूसरे के प्रति ऐसी सोच रखने के लिए खेद भी जताया .
सीख – व्यक्ति में कितना भी ज्ञान आ जाए, उसे घमंड नहीं करना चाहिए . साथ ही दूसरों के प्रति बुरे भाव नहीं रखने चाहिए .
लालच बुरी बला – Short Story in Hindi With Moral
एक राजा अपने लिए समझदार और बुद्धिमान ईमानदार मंत्री की तलाश कर रहे थे। राजा ने कई लोगों का साक्षात्कार लिया लेकिन कोई भी व्यक्ति उन्हें मंत्री बनने के लायक नहीं लगा. वहीं जब यह बात राज्य के लालची सबसे बुद्धिमान व्यक्ति को पता लगी तो वो फौरन राजमहल चला गया।
राजा से मिलकर उसने कहा, मैं इस गांव का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति हूं और मैं आपका मंत्री बनने के काबिल हूं। राजा ने उससे काफी कठिन सवाल किए और उसने समझदारी सें सवालों का जवाब दिया। राजा ने उसे मंत्री बना लिया।
एक दिन मंत्री को रास्ते में एक बूढ़ा इंसान मिलता है जिसके पास तीन गठरी होती। बूढ़ा मदद मांगते हुए कहता है, क्या तुम मेरी एक गठरी उठा सकते हो? ये काफी भारी है। वह बुजुर्ग की मंदद करने के लिए हां कर देता है और एक गठरी उठा लेता है।
मंत्री बुजुर्ग से पूछता है कि आखिर इसमें क्या है जो ये इतनी भारी है? बुजुर्ग ने कहा, इस गठरी में सिक्के हैं। आगे
एक नदी आती है जिसे पार करना होता है. बुजुर्ग कहता है, क्या तुम मेरी दूसरी गठरी उठा सकते हो?
क्योंकि दो गठरी लेकर मैं ये नदी पार नहीं कर सकता हूं। वह दूसरी गठरी उठा लेता है और ये गठरी भी भारी होती है। बुजुर्ग कहता है, इस गठरी में चांदी के सिक्के हैं। नदी पार करने के बाद एक पहाड़ आता है।
बुजुर्ग ने कहा, मैं गठरी के साथ ये पहाड़ नहीं चढ़ सकता हूं. क्या तुम मेरी तीसरी गठरी भी उठा सकते हो। मंत्री बिना कुछ बोले तीसरी गठरी भी उठा लेता है. बुजुर्ग पहाड़ चढ़ते हुए उससे कहता है कि इस गठरी में सोने के सिक्के हैं, तुम इसको लेकर मत भागना, मैं तुम्हारा पीछा नहीं कर सकता हूं।
थोड़ी दूर जाने के बाद मंत्री सोचता हैं कि अगर ये तीनों गठरी लेकर भाग जाऊं तो मैं धनवान बन जाऊंगा और ये बुजुर्ग तो मुझे कभी पकड़ भी नहीं पाएगा और वह तीनों गठरी लेकर भाग जाता है। घर जाकर वो जैसे ही तीनों गठरी खोलता है तो उसमें लोहे के सिक्के होते हैं।
वो हैरान रह जाता है. कुछ देर बाद उसके घर बुजुर्ग आ जाते हैं और उससे कहते हैं कि तुमने लालच में आकर मेरी तीनों गठरी चुरा ली। मंत्री गुस्से से कहता है कि तुमने झूठ बोला, इन गठरी में सोने और चांदी के सिक्के नहीं हैं।
बुजुर्ग हंसते हुए अपने असली वेश में आ जाते हैं। वह कोई और नहीं, बल्कि राजा रहते हैं। राजा कहते हैं, तुम बुद्धिमान थे इसलिए मैंने तुम्हें अपना मंत्री नियुक्त किया लेकिन तुम्हारे अंदर ईमानदारी बिलकुल नहीं है, इसलिए तुम मेरे मंत्री बनने के लायक नहीं हो।
राजा की ये बात सुनकर उसको अपनी गलती पर खूब पछतावा हुआ।
सीख – लालच में आकर हम अपना ही नुकसान कर बैठते हैं, इसलिए हमेशा ईमानदार रहें।
सेठ का पाजामा – Top 10 Moral Stories in Hindi
एक कंजूस सेठ था। वह रोजाना एक ही पाजामा पहनकर दुकान पर जाता था। पाजामा काफी पुराना हो गया था और जगह-जगह से फट गया था। घरवालों और परिचितों के बार-बार कहने पर उसने बड़ी हिम्मत करके अपनेलिए एक नया पाजामा सिलवाया।
घर आकर जब उसने पाजामा पहना तो वह चार अंगुल बड़ा था। सेठ अपनी पत्नी के पास आया और बोला कि यह पाजामा चार अंगुल बड़ा है, इसे काटकर छोटा कर दो। पत्नी ने कहा कि मैं अभी रसोई में काम कर रही हूं,बाद में करूंगी।
वह पाजामा लेकर अपनी पुत्रवधू के पास गया और उससे भी यही कहा,वह बोली कि मैं अभी घर की साफ-सफाई कर रही हूं। सेठ बेटी के पास पहुंचा तो वह भी पढ़ाई में व्यस्त थी। उसने भी उसे टाल दिया। सेठ पुराना पाजामा पहनकर ही दुकान चला गया।
उसके जाने के बाद, जब सेठानी काम से फ्री हुई तो उसे याद आया कि उसके पति ने पाजामा चार अंगुल छोटा करने को कहा था,अतः उसने पाजामे को काटकर ठीक कर दिया | कुछ देर बाद उसकी पुत्रवधू का काम भी खत्म हो गया उसे भी ससुर जी के पजामे को काटकर चार अंगुल छोटा करन याद था, उसने भी कर दिया ।
इसके बाद बारी थी बेटी की, उसने भी अपने पिता की आज्ञा का पालन किया।शाम को जब सेठ घर वापस लौटा तो
उसने पाया कि उसका पाजामा बारह अंगुल कटकर बेकार हो चुका था।
सार – किसी काम को करवाने के लिए सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि वह काम किससे कराना है।
दो मूर्ख चोर – Hindi Moral Stories
किसी गांव में एक दंपति रहते थे. उनके कोई संतान न थी. उसी गांव के पास दो चौर भी रहते थे। पूरा गांव उनसे परेशान था. चोर इतने शातिर थे कि गांववासियों की तमाम सावधानियों के बीच भी चोरी कर ही जाते।
एक बार वे पिछवाड़े से दंपति के घर में घुस गए. पति के दोनों नौकर बहादुर व शमशेर भी सोए हुए थे। चोर घर में सामान खोज ही रहे थे कि अचानक चोरों के हाथ से कोई वस्तु छूटकर गिर गई। आवाज के पास ही दूसरे कमरे में सोई पत्नी की नींद खुल गई .
उसको चोरों के आने का अंदेशा हो गया . उसने तुरंत ही पास में सो रहे पति को जगाया और धीरे से चोंरों के आने के बारे में बताया. फिर धीरे से बोली, “जैसा पूछूं वैसा ही जवाब देना।’
पत्नी ने पति से तेज स्वर में पूछना शुरू किया, “अजी सुनते हो, तुम जल्द ही बाप बनने वाले हो। अगर बेटा हुआ तो
क्या नाम रखोगे उसका?!
पति बोला, ‘बहादुर नाम रखूंगा.. पत्नी ने नाम जोर से दोहराया, “क्या. ..बहादुर ?’ “अच्छा दूसरे बेटे का नाम क्या रखोगे?’ पति भी तेज स्वर में बोला, ‘शमशेर नाम रखूँंगा।’ पत्नी ने फिर जोर से नाम दोहराया, “क्या शमशेर?
अच्छा जरा बताओ तो, तीसरे का क्या नाम रखोगे?’
पति फिर जोर से बोला, “चोर रखूंगा, चोर .” पति-पत्नी की बात सुनकर चोर मुस्करा रहे थे. उन्हें दोनों की बातों में आनंद आने लगा था. तभी उन्होंने सुना, पत्नी कह रही थी, ‘अजी यह तो बताओ कि तुम अपने तीनों बेटों को पुकारोगे कैसे?”
पति जोर से बोला, “अरे इसमें क्या परेशानी है : एक साथ पुकारूंगा, बहादुर- शमशेर-चोर .’ “अरे, तुम्हारी इस चूहे
जैसी आवाज को हमारे शेर बच्चे सुन ही नहीं पाएंगे . जोर से पुकार कर बताओ न!” पत्नी ने कहा।
पति जोर-जोर से पुकारने लगा . “बहादुर-शमशेर-चोर . . .बहादुर- शमशेर-चोर!’ पति की ऊंची पुकार
सुनकर दोनों नौकर हड़बड़ा कर उठ बैठे और कमरे के पास आकर बोले, “मालिक, कहां हैं चोर?”
पत्नी ने हाथ से पास वाले कमरे की तरफ इशारा कर किया. फिर क्या था. दोनों ने लपक कर चोरों को पकड़ लिया और उनकी धुनाई कर डाली।
सीख – मुश्किल समय में तर्क और बुद्धि के प्रयोग से मुसीबतों से बाहर निकला जा सकता है
मूर्ख बगुला – Top 10 Moral Stories in Hindi
किसी वन में एक बहुत बड़ा वृक्ष था। उस पर बगुलों के अनेक परिवार रहते थे। उसी वृक्ष के कोटर में एक काला सर्प भी रहता था। अवसर मिलने पर वह बगुला बगुलों के उन बच्चों को मारकर खा जाया करता था।
जिनके पंख भी नहीं नहीं उगे होते थे. इस प्रकार बड़े आनंद से उसका जीवन व्यतीत हो रहा था. यह देखकर बगुले बड़े खिन्न रहते थे, किन्तु उनके पास कोई उपाय नहीं था। तब दु:खी होकर एक दिन एक बगुला नदी किनारे जाकर बैठ गया।
रो-रोकर उसकी आंखें लाल हो गई थीं. बगुले को इस प्रकार रोता देखकर एक केकड़े ने उससे पूछा- मामा! आज आप इस प्रकार क्यों रो रहे हैं?” बंगुला बोला, (प्रिय! क्या बताऊं? हमारे वृक्ष के कोटर में रहने वाले सर्प ने मेरे सारे बच्चे मार खाए हैं। यही मेरा दु :ख है।
क्या तुम इसका कोई उपाय बता सकते हो ?’ केकड़ा सोचने लगा कि यह बगुला तो उसका जातिगत शत्रु है। अत : इसको कोई ऐसा उपाय सुझाया जाए जिससे इसके सारे साथी भी नष्ट हो जाएं। फिर उसने कहा, मामा! यदि यही बात है तो तुम मछलियों की हड्डियां नेवले के बिल से उस सांप के बिल तक बिखेर दो।
नेवला उस मछली के मांस को खाता हुआ स्वयं ही सर्प के बिल तक पहुंच जाएगा . वहां पर वह सांप को मार खाएगा। बगुले की समझ में बात आ गई। उसने अपने साथियों को उपाय बताया और सबने मिलकर वह कार्य किया।
तदनुसार नेवले ने न केवल मछलियों का मांस खाया, अपितु सर्प को भी मारकर खा गया। किन्तु उसके बाद नेवला वहां से गया नहीं। उसने एक-एक करके सारे बगुलों को भी समाप्त कर दिया।
सीख – कभी भी किसी की सलाह मानने से पहले उसके दूरगामी परिणाम पर विचार कर लेना चाहिए। यह जरूरी नहीं कि वह आपका हितचिंतक ही हो।
सेठजी का खाना – Hindi Moral Stories with Pictures
एक बार शहर के बड़े सेठजी ने हमें खाने पर बुलाया और अपने साथ हमें भी बिठाया। चांदी की थालियों में चांदी की
‘कटोरियां,उनमें भांति-भांति के खाने-हलुवा भी, खीर भी, पूरियां भी, फुलके भी, कितनी ही सब्जियां।
हमारी थाली के बाद सेठजी की थाली आई। उसमें पीली सी कोई पतली- सी (द्रव )वस्तु, उसके पास फुला हुआ छोटा सा अनचुपड़ा फुलका | मैंने समझा, सेठजी का असली खाना अभी आएगा, परन्तु वहां तो कुछ भी नहीं आया। सेठजी उसी एक फुलके को धीरे-धीरे खाते रहे, उस पतली-सी वस्तु में प्रत्येक ग्रास को भिगो-भिगोकर।
मैंने पूछा, सेठजी आप खाना कब खाएंगे ? वह बोले- खा तो रहा हूं। यह फुलका, यह मूंग की दाल का पानी। बस ! इतना ही खा सकता हूँ। मैंने पूछ तो आप दूध अधिक पीते होंगे। वह बोले- नहीं जी, दूध तो मेरे पेट में गैस उत्पन्न कर देता है।
मैंने कहा: दही, छाछ लेते होंगे ? बोले एक बार खाया था छः महीने जुकाम रहा था। मैंने कहा-छुहारे, पिस्ते, बादाम खाते होंगे आप ? वह बोले भगवान का नाम लो जी! ये तो बहुत गर्म वस्तुएं.हैं इन्हें ‘पचाएगा कौन? ये दुर्दशा है इन बड़े- बड़े सेठों की दो फुल के भी नहीं खा सकते।
फिर सेठपन क्या हुआ ? किस काम का है ये? इन लोगों से पूछो इतना काम क्यों करते हो तो! धन कमाने के लिए। पूछो धन क्यों कमाते हो ?
खाना खाने लिए। फिर खाते क्यों नहीं हो ? बोलेंगे डॉक्टर डॉक्टर निश्चित निषेध कर दिया है। इस कमाई का आखिर क्या अभिप्राय है?
सीख: – कमाना महत्वपूर्ण नहीं महत्वपूर्ण है, खाना महत्वपूर्ण नहीं पचाना महत्वपूर्ण है।
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