शब्द विचार की परिभाषा एवं भेद – Shabd Vichar

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Shabd Vichar : दोस्तों आज हमने शब्द विचार की परिभाषा एवं भेद लिखे है। अक्सर विद्यार्थियों को परीक्षा में शब्द विचार की परिभाषा और उसके भेद पूछे जाते हैं कक्षा 6 7 8 9 10 के विद्यार्थियों को शब्द विचार पढ़ाया जाता है।

शब्द विचार हिंदी व्याकरण का हिस्सा है इसके अंतर्गत हिंदी भाषा में दूसरी भाषाओं से लाए गए शब्दों को समझाया गया है। यदि आपको हमारे द्वारा लिखा गया शब्द विचार पर लेख अच्छा लगता हो तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करना ना भूले।

शब्द विचार परिभाषा (Shabd kI Paribhasha) – वर्ण भाषा का मूल आधार है। एक या एक से अधिक वर्णो/ध्वनि से बनी सार्थक एवं स्वतंत्र ध्वनि को शब्द कहते हैं। वर्णों का ऐसा मेल जो एक निश्चित अर्थ को प्रकट करता है शब्द कहलाता है।

बोल-चाल की भाषा में ऐसे भी बहुत से शब्द प्रयोग किए जाते हैं जिनका कोई अर्थ नहीं होता। ऐसे शब्दों को निरर्थक शब्द कहते हैं। व्याकरण में ऐसे शब्दों पर विचार नहीं किया जाता।

Shabd Vichar – Shabd ke Kitne Bhed Hote Hain

shabd vichar
Shabd Vichar

दो या दो से अधिक वर्णों के मेल से बनने वाले सार्थक तथा स्वतंत्र ध्वनि-समूह को शब्द कहते हैं।

शब्दों का वर्गीकरण पाँच आधार पर किया जाता है।

  1. स्रोत
  2. अर्थ
  3. प्रयोग
  4. रचना
  5. व्याकरणिक प्राकार्य

स्रोत के आधार पर

स्रोत का अर्थ है मूल या उद्गम स्थान कोई शब्द भाषा में कहाँ से आया, किस रूप में स्वीकार किया गया या किसी अन्य भाषा के शब्द के साथ मिलकर मूल शब्द ने एक नया रूप बना लिया, इस आधार पर शब्दों का वर्गीकरण स्रोत के आधार पर वर्गीकरण कहा जाता है।

स्रोत के आधार पर शब्दों को पाँच वर्गों में बाँटा गया है

(क) तत्सम
(ख) तद्भव
(ग) देशज
(घ) विदेशी
(ड) संकर

(क) तत्सम शब्द – संस्कृत भाषा के शब्दों को जब बिना किसी परिवर्तन के अपने मूल रूप में हिंदी में प्रयोग किया जाता है तो उन्हें तत्सम शब्द कहते हैं जैसे- हृदय, रक्षा, अग्नि, माता, कर्म, सूर्य, यज्ञ आदि।

(ख) तद्भव शब्द – वे संस्कृत शब्द जो कुछ परिवर्तित या बिगड़े रूप में हिंदी में प्रयोग किए जाते हैं, तद्भव शब्द कहलाते है।

जैसे- हिया, आग, अम्मा, काम, सूएज, चाँद आदि।

तत्सम शब्द तद्भव शब्द
अग्नि आग
अगम्य अगम
दंड डंडा
अमूल्य अमोल
अज्ञान अजान 
अमृत अमरत
अंगुलि अंगुली 
कुक्कुर कुता
कुंभकार कुम्हार 
अंगुष्ठ अँगूठा
कदली केला 
अष्टादइश अठारह
अष्ट आठ 
कुष्ठ कोढ
अक्षि आँख 
कोकिल कोयल
आमलक आँवला 

(ग) देशज शब्द- जो शब्द देश के विविध प्रांतों और जातियों की बोलियों से क्षेत्रीय प्रभाव के कारण आवश्यकतानुसार बनकर प्रचलित हो गए हैं वे देशज शब्द कहलाते है।

जैसे- लोटा, थैला, धडकन, टांग, गाड़ी, झोंपड़ी, डिब्बा, पेट, झगड़ा, खाट, पगड़ी, झुग्गी, फावड़ा आदि।

(घ) विदेशी शब्द – जो शब्द विदेशी भाषाओं से आकर हिंदी में जुड़ गए हैं, विदेशी शब्द कहलाते हैं। हिन्दी पर अनेक भाषाओं का प्रभाव है। अंग्रेज़ी, फ़ारसी, चीनी, पुर्तगाली, फ्रांसीसी आदि भाषाओं के शब्द अब हिंदी में प्रयोग किए जा रहे है जैसे- डॉक्टर, कॉलेज, रेडियो, संतरा, पादरी, तौलिया, कनस्तर, साबुन, चाय, लीची, अदालत, जुर्माना, ताकत, फ़ौज, गिरफ़्तार, तूफ़ान, तारीख, कुरतत, कानून, दरवाज़ा, ज़मीन, अचार आदि।

ये शब्द किस भाषा के है इस प्रकार इनका वर्गीकरण करना सरल नहीं है क्योंकि सभी भाषाओं का जानकार होना विद्यार्थियों के लिए कठिन है।

(ड) संकर शब्द – जो शब्द दो भिन्‍न भाषाओं के शब्दों को मिलाकर बनते हैं वे संकर शब्द कहलाते है।

जैसे-

  • वर्षगाँठ, कपड़ा-उद्योग, पूँजीपति, मॉँगपत्र – (हिंदी और संस्कृत)
  • फलदार, थानेदार, घड़ीसाज़, किताबघर, नुकसानवायक – (हिंदी और फ़ारसी)
  • रेलयात्री, सिनेमाघर, रेलगाड़ी, टिकटघर – (अंग्रेज़ी और हिंदी)

अर्थ के आधार पर

यद्यपि शब्द का एक निश्चित अर्थ होता है परंतु प्रयोग और प्रसंग के अनुसार उसका कोई दूसरा अर्थ भी निकलता है।

अर्थ के आधार पर शब्द के छह भेद है-

(क) एकार्थी
(ख) अनेकार्थी
(ग) पर्यायवाची
(घ) विलोम
(ड) श्रुतिसम भिन्नार्थक
(च) वाक्यांश के स्थान पर एक शब्द

(क) एकार्थी शब्द- जिन शब्दों का केवल एक ही अर्थ होता है उन्हें एकार्थी शब्द कहते हैं जैसे – उँगली, गाय, घोड़ा, सम्राट, माता, लोहा आदि।

(ख) अनेकार्थी शब्द – कुछ शब्द ऐसे होते हैं जिनका प्रयोग एक से अधिक अर्थों में किया जाता है ने अनेकार्थी शब्द कहते हैं।

जैसे- लाल – बेटा, एक रंग
कुल – वंश, सब
काल – समय, मृत्यु
पत्र – पत्ता, चिट्ठी
तीर – किनारा, बाण
सोना – एक धातु, नींद

(ग) पर्यायवाची शब्द – लगभग समान अर्थ बताने वाले शब्द पर्यायवाची शब्द कहलाते है।

जैसे-
बादल – जलद, मेघ, नीरद
आकाश – गगन, अंबर, आकाश
रात – निशा, रात्रि, रजनी
हवा – वायु, समीर, पवन

(घ) विलोम शब्द – जो शब्द एक दूसरे का विपरीत या उलटा अर्थ देते है, उन्हें विलोम शब्द ‘कहते हैं।

जैसे –
खट्टा = मीठा
कटू = मधुर
सुगम = दुर्गम
हर्ष = विषाद
निंदा = प्रशंसा
नूतन = पुरातन

(ड) श्रुतिसम भिन्नार्थक शब्द – जो शब्द सुनने में एक जैसे लगते हैं परंतु उनके अर्थ भिन्‍न-भिन्‍न होते हैं उन्हें श्रुतिसम-भिन्नार्थक शब्द कहते है ।

जैसे- अन्न – अनाज
नीर – पानी
अन्य – दूसरा
नीड़ – घोंसला
कुल – वंश
कपट – धोखा
कूल – किनारा
कपाट – दरवाज़ा

(च) अनेक शब्दों के लिए एक शब्द – जब भाषा में वाक्यांश के स्थान पर एक शब्द का प्रयोग किया जाता है तो उसे अनेक शब्दों के लिए एक शब्द कहते है।

जैसे-

जल में रहने वाला – जलचर
किए गए उपकार को मानने वाला – कृतज्ञं
शिव की उपासना करने वाला – शैव
जिसका इलाज न हो सके – लांइलाज/असाध्य
प्रयोग के आधार पर-

भाषा में प्रयोग के आधार पर शब्दों को दो भागों में बाँटा गया है-

(क) सामान्य शब्द (ख) तकनीकी शब्द

(क) सामान्य शब्द – व्यक्ति दैनिक जीवन में बोलचाल के लिए जिन शब्दों का प्रयोग करता है उन्हें सामान्य
शब्द कहते है जैसे- नदी, पहाड़, खाना, कपड़ा, मकान, रोटी, मित्र, घर, पंखा आदि।

(ख) तकनीकी शब्द – वे शब्द जो किसी विशेष विषय, व्यवसाय या विज्ञान आदि से संबंधित होते हैं तकनीकी
शब्द कहलाते है जैसे- कंप्यूटर, लेबोरेट्री, डॉक्टर, इंटरनेट, मिसाइल, सचिव, संज्ञा, निदेशालय, विज्ञान, जीवांश्म, वरिष्ठ, विराम-चिह्न आदि।

रचना के आधार पर

रचना का अर्थ होता है बनावट, बनावट या रचना के आधार पर शब्द तीन प्रकार के होते हैं-

(क) रूढ़ (ख) यौगिक (ग) योगरूढ़

(क) रूढ़ शब्द- हिंदी भाषा के वे शब्द जो परंपरा से किसी विशेष अर्थ के साथ प्रयोग किए जा रहे है रूढ़ शब्द कहलाते हैं। ये किसी सामान्य और प्रचलित अर्थ का बोध कराते हैं। रूढ़ शब्दों के और टुकड़े नहीं किए जा सकते है।

जैसे – आदमी, घर, हाथ, घोड़ा, आँख आदि।

(ख) यौगिक शब्द – दो या दो से अधिक शब्दों या शब्दांशों से मिलकर बने शब्दों को यौगिक शब्द कहते हैं। यदि इन शब्दों के टुकड़े किए जाएँ तो वे भी सार्थक शब्द होते है

जैसे- रेलगाड़ी, प्रयोगशात्रा, हिमालय, फूलदान, देवदूत, राष्ट्रपति।

(ग) योगरूढ़ शब्द – जो शब्द दो या दो से अधिक शब्दों या शब्दांशों से मिलकर बने हों किंतु उनका प्रयोग
सामान्य अर्थ के लिए नहीं किसी विशेष अर्थ के लिए होता है, उन्हें योगरूढ़ शब्द कहते है।

जैसे – जलज – जल (पानी) + “ज? (उत्पन्न होने वाला) अर्थात कमल। जल में मछली, मोती, साँप कछुआ भी उत्पन्न होते है परंतु “जलज” को केवल कमल के लिए प्रयोग करते है।

कुछ अन्य उदाहरण हैं- निशाचर, चतुर्भुज, पीतांबर, लंबोदर, चौराहा, चारपाई आदि।

व्याकरणिक प्राकार्य के आधार पर

व्याकरण की दृष्टि से भाषा में प्रयोग किए जाने वाले शब्दों को दो भागों में बाँठा गया है-

(क) विकारी शब्द (ख) अविकारी शब्द

(क) विकारी शब्द – जिन शब्दों का रूप वाक्य में प्रयोग किए जाने पर लिंग, वचन, कारक, काल, वाच्य आदि के कारण बदल जाता है उन्हें विकारी शब्द कहते हैं।

विकारी शब्द के चार भेद हैं-

(i) संज्ञा (ii) सर्वनाम (iii) विशेषण (iv) क्रिया

(ख) अविकारी शब्द – जिन शब्दों के रूप, लिंग, वचन, कारक, काल और वाघ्य के कारण बदलते नहीं है उन्हें अविकारी शब्द कहते है।

अविकारी शब्दों के चार भेद हैं-

(i) क्रियाविशेषण (ii) संबंधबोधक (iii) समुच्चयबोधक (iv) विस्मयादिबोधक

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