Kheda Satyagraha: खेड़ा सत्याग्रह किसानों के कर माफ करने के लिए किया गया था। 19वी सदी की बात है जब गुजरात के खेड़ा जिले में बहुत भयंकर अकाल पड़ा था उस समय ब्रिटिश सरकार की हुकूमत हुआ करती थी जब ब्रिटिश सरकार किसानों से लगान वसूल किया करती थी। लेकिन उस साल वहां के किसानों के मुताबिक फसल का चौथा हिस्सा भी नहीं हुआ था इसलिए किसान लगान देने में असमर्थ है लेकिन ब्रिटिश सरकार इस बात को नहीं मान रही थी और वह जबरन किसानों से कर वसूली कर रही थी।
जब गांधी जी बिहार के चंपारण का सत्याग्रह करके वापस आ रहे थे तब उन्हें पता चला कि गुजरात के किसानों से जबरन कर वसूला जा रहा है। तब उन्होंने गुजरात के खेड़ा जिले में किसानों को कहा कि वह कर न दें और इसके लिए उन्होंने एक आंदोलन भी चलाया जिसका नाम पड़ा खेड़ा सत्याग्रह।
गांधी जी के सत्याग्रह से किसानों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी और उन्होंने गांधी जी के बताएं नक्शे कदम पर चलना शुरू कर दिया। इसी परिणास्वरूप वल्लभ भाई पटेल जो कि पेशे से वकील थे उन्होंने वकालत छोड़ कर गांधी जी के साथ मिलकर इस आंदोलन को आगे बढ़ाया।
सत्याग्रह में वल्लभभाई पटेल के जुड़ने से किसानों में एक नया उत्साह और आत्मविश्वास आ गया। इसके बाद बेटी सरकार का किसानों पर दमन और बढ़ गया था वह किसानों की पशुओं और जमीन को कुर्क करने लगे थे। लेकिन किसानों ने हार नहीं मानी और सत्याग्रह पर बैठे रहे। यह सत्यापित देखने में साधारण लग रहा था लेकिन भारतीय चेतना विकास में इसका महत्व चंपारण सत्याग्रह से कम नहीं था।
विषय-सूची
खेड़ा सत्याग्रह के कारण (Kheda Satyagraha ke karan)
1) खेड़ा जिले में भयंकर अकाल पड़ने से फसल का चौथा हिस्सा भी नहीं हुआ था फिर भी अंग्रेजी अफसर पूरा कर वसूल कर रहे थे।
2) ब्रिटिश अफसरों की किसानों के प्रति तानाशाही।
3) किसानों के पशु और खेतों को कुर्क कर लेना।
खेड़ा सत्याग्रह का नेतृत्व (Leader of Kheda Satyagraha)
खेड़ा सत्याग्रह का नेतृत्व महात्मा गांधी जी के साथ सरदार वल्लभ भाई पटेल, महादेव देसाई, निहारी पारीक, शंकर लाल बैंकर, श्रीमति अनुसुइया बहन, इन्दुलाल याज्ञिक और वल्लभ भाई के बड़े भाई विट्ठल भाई पटेल और अन्य नेताओं ने भी इस सत्याग्रह का नेतृत्व किया था
खेड़ा सत्याग्रह का इतिहास (History of Kheda Satyagraha)
सन 1918 में गुजरात की खेड़ा जिले में भयंकर अकाल पड़ा था। जिस कारण किसानों की पूरी फसल नष्ट भ्रष्ट हो गई थी और जो बची थी वह उनके अपने लालन पालन के लिए ही कम पड़ रही थी। लेकिन बैटरी सरकार उनसे उतना ही कर वसूल कर रही थी जितना की पूरी फसल पर वसूल करना था। किसानों ने अफसरों के पास जाकर गुहार लगाई कि इस बार फसल नहीं हुई है तो वह उनका इस साल का कर माफ कर दे। क्योंकि राजस्व कोड
मैं लिखा था कि अगर किसी खेत में अगर फसल का एक चौथाई हिस्सा ही फसल होती है तो उस पर कर नहीं लिया जा सकता है, लेकिन ब्रिटिश सरकार के अफसरों ने लगान माफ करने से बिल्कुल मना कर दिया।
जब गांधी जी को इस बात का पता चला कि गुजरात के खेड़ा जिले में भयंकर अकाल पड़ा है और ब्रिटिश सरकार किसानों से जबरन कर वसूली कर रही है तो उन्होंने खेड़ा जाने का निश्चय किया और देखा कि किसानों की मांगे सही है नियम अनुसार उनका कर माफ होना चाहिए लेकिन ब्रिटिश सरकार की अफसर अपनी तानाशाही दिखा रहे थे और कर्ज माफ करने को तैयार नहीं थे। इसलिए गांधीजी किसानों से मिले और उनको सलाह दी कि वह सत्याग्रह करें।
किसानों को समझाया सत्याग्रह का अर्थ –
1) गांधीजी ने कहा कि अपने हक के लिए लड़ना बिना किसी के आगे झुके, सत्य की खातिर आगरा को रोकना के नाही सत्याग्रह है।
2) गांधी जी ने किसानों से वचन लिया की वह उनके साथ सत्याग्रह करेंगे, और उनको उनका हक भी दिलाएंगे। लेकिन आप सबको डटे रहना होगा भले ही ब्रिटिश सरकार डंडे चलाएं का गोलिया चलाएं आप हिंसा नहीं करेंगे, नहीं तो मैं सत्याग्रह छोड़ दूंगा।
3) गांधी जी ने किसानों को प्रतिज्ञा दिलाते हुए कहा कि प्रतिज्ञा तोड़कर मुझे आघात पहुंचाने से अच्छा है कि रात में आकर मेरी गर्दन काट देना। ऐसे लोगों को माफ करने के लिए मैं ईश्वर से प्रार्थना करूंगा पर प्रतिज्ञा तोड़कर आघात पहुंचाने के लिए मैं माफी नहीं मांग सकता।
फिर गांधी जी ने भी किसानों के साथ मिलकर सत्याग्रह करना प्रारंभ कर दिया, और लोगों से अपील की गई कि वह समाज सेवक और कार्यकर्ताओं बने। गांधी जी की इस अपील पर वल्लभ भाई पटेल जो कि उस समय बहुत बड़े वकील थे उन्होंने अपनी वकालत छोड़ कर इस सत्याग्रह में शामिल हो गए।
और वल्लभ भाई पटेल ने भी किसानों के पास जाकर प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर कराए कि वह झूठा कहलाने और स्वाभिमान को नष्ट कर जबरदस्ती बढ़ाया कर नहीं देंगे और ना ही अंग्रेजों को मत के आगे झुकेंगे चाहे उनके खेत या घर ही क्यों ना कुर्क कर लिए जाएं किसान अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ़ रहेंगे।
इसके बाद किसानों के कर नहीं देने पर अंग्रेजी अफसरों ने किसानों की जमीन और मवेशियों को कुर्क करना चालू कर दिया था। देखते ही देखते सभी किसानों के खेतों को कुर्क कर लिया गया जिससे किसानों के खाने के भी लाले पड़ गए। तब तब गांधी जी ने किसानों से कहा कि जो खेत कुर्क को कर लिए गए हैं। वह उन खेतों से अपनी फसल काट कर ले आए।
गांधीजी के इस आदेश का पालन करते हुए मोहनलाल पंड्या और कुछ अन्य किसानों ने मिलकर एक खेत से पूरी प्याज की फसल उखाड़ लाए थे। जब ब्रिटिश अफसरों को इस बात का पता लगा तो उन्होंने उन किसानों को पकड़ लिया और उन पर मुकदमा चला कर उन्हें सजा भी दी गई।
लेकिन इतना सब होने के बावजूद भी किसानों का मनोबल कम नहीं हुआ था। और किसानों के हित सत्याग्रह को देखकर आखिरकार ब्रिटिश अफसरों को झुकना ही पड़ा उन्होंने 1918 का कर माफ करने के साथ-साथ कहा कि उनसे 1919 में भी कम कर लिया जाएगा। और किसानों की कुर्क की हुई संपत्ति भी वापस लौटा दी गई। यह सत्याग्रह किसानों की एक बड़ी जीत थी। Kheda Satyagraha को प्रथम असहयोग आंदोलन भी कहा जाता है।
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Kheda adolen 1918 me kis tarik pe huva tha
Kheda adolen ki koi date nhi hai kyo ki ye kai dino tak chala tha