Adhai Din Ka Jhonpra History | अढ़ाई दिन का झोपड़ा

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Adhai Din Ka Jhonpra : राजस्थान के अजमेर शहर जिसे ख्वाज़ा की नगरी भी कहते है, यहाँ पर 800 साल पहले एक इमारत बनाई गयी थी जिसे सिर्फ ढाई दिन में बनाया गया था इसलिए इसे अढ़ाई दिन का झोपड़ा भी कहा जाता है. यह इमारत विश्व प्रसिद्ध ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह से आगे कुछ ही दूरी पर स्थित है आईये देखते है इस को कब किसने और कैसे बनाया.

Adhai Din Ka Jhonpra

अढ़ाई दिन का झोपड़ा एक मस्जिद है, इसकी निर्माण की शुरुवात कुतब-उद-दीन-ऐबक ने मोहम्मद गोरी के आदेश पर 1192 ई. में की थी. और यह 1199 ई. में बनकर तैयार हो गयी थी. इसका निर्माण संस्कृत महाविद्यालय के स्थान पर हुआ था जबकि कुछ लोगो का मानना है यहाँ पर पहले हिन्दू और जैन मंदिर हुआ करते थे जिनको तोड़ कर इस मस्जिद का निर्माण किया गया था . लोग इस बात के पीछे के तर्क भी देते है की क्यों यहाँ पर मस्जिद बनायीं गयी आई जानते है

मस्जिद का नाम अढ़ाई दिन का झोपड़ा क्यों पड़ा –


मस्जिद का नाम अढ़ाई दिन का झोपड़ा क्यों पड़ा इसके लिए लोग अलग अलग बाते बताते है. 11वीं सदी का दोर था जब मुहम्मद गोरी ने तराई के युद्ध में महाराजा पृथ्वीराज चौहान को हरा कर विजय प्राप्त की थी तब अजमेर में प्रवेश करने से पहले मुहम्मद गोरी ने वहां पर एक मस्जिद बनाने की इच्छा जाहिर की थी

और इसके लिए केवल 60 घंटे का वक्त दिया था तब इस मस्जिद को स्थापत्य हिन्दू व जैन मन्दिरों के अवशेषों से तैयार किया गया था. कुछ लोग कहते है की इस मस्जिद का मुख्य हिस्सा ढाई दिन में बनकर तैयार हुआ इसलिए इसे अढ़ाई दिन का झोपड़ा कहा जाता है.

सूफी संतो का मानना है की अढ़ाई शब्द पृथ्वी पर मानव के अस्थाई होने का संकेत है. इंडिया के ASI के अनुसार 18वीं सदी में यहाँ पर ढाई दिन का मेला लगता था जो आज भी लगता है इस कारण इसको अढ़ाई दिन का झोपड़ा कहते है.

मस्जिद के पश्चिम दिशा में 10 गुम्बद है. इसके दरवाजे पर दो मीनार है यह दोनों मीनार खोखली है और इनमे 24 कोणीय और गोलाईदार बांसुरिया है जो की हमे दिल्ली के कुतब मीनार में भी देखी जा सकती है, मुख्य दरवाजे का मेहराब 60 फुट ऊँचा है और जिसके दोनों तरफ तीन-तीन मेहराब है.

इसका मुख्य कमरा (हॉल) 248 फुट चोड़ा है और 40 फुट लम्बा है. जिसको सहरा देने के लिए 70 खंबे बने है. इसके खम्बो में बेहद खुबसूरत नक्काशी की गयी है जिनमे हिंदू-मुस्लिम संस्कृति की कारीगिरी देखने को मिलती है.इस मस्जिद की पूरी इमारत में 344 खम्बे है जिनमे से केवल 70 खम्बे ही बचे है.

यह इमारत तीन तरफ से पहाड़ियों से घिरी हुई है इसी पहाड़ी पर प्रसिद्ध तारागढ़ किला है. अबु बकर ने इसका नक्शा तैयार किया था

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