अगर आप ध्वनि प्रदूषण पर हैं निबंध लिखना चाह रहे हैं तो आप सही जगह आए हैं यहां पर हमने Dhwani Pradushan के बारे में विस्तार पूर्वक निबंध लिखा है यह सभी कक्षा के विद्यार्थियों के लिए निबंध लिखने में सहायक होगा।
दोस्तों Noise Pollution Essay in Hindi हमारे देश के लिए ही नहीं बल्कि यह पूरे विश्व की समस्या है। हमारे देश में ध्वनि प्रदूषण दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। ध्वनि प्रदूषण के बढने के पीछे बहुत सारे कारण हैं जिन पर हम आगे चर्चा करेंगे।
Noise Pollution Essay Hindi me School or College ke Student ke Liye – 100, 200, 400, 700 or 3000 words
विषय-सूची
Noise Pollution Essay in Hindi
(1) ध्वनि प्रदूषण पर निबंध (100 शब्द) – Dhwani Pradushan Par Nibandh
हमारी पूरे देश में ध्वनि प्रदूषण ने एक महामारी की तरह पैर पसार लिए है, अगर जल्द ही कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले पीढ़ी को इसके भयंकर परिणाम भुगतने होंगे। यह एक धीमा जहर की तरह जो धीरे-धीरे मानव स्वास्थ्य को खराब करता है।
यह ज्यादातर बड़े शहरों में होता है क्योंकि हमारे देश के ज्यादातर उद्योग धंधे एवं बड़े कारोबारी बड़े शहरों में ही किए जाते है जिसके कारण अत्यधिक शोर उत्पन्न होता है।
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ध्वनि प्रदूषण केवल मानव जाति के लिए ही घातक नहीं है यह अन्य जीव जंतुओं के लिए भी उतना ही घातक है। इसे वन्य जीव जंतुओं की दिनचर्या प्रभावित होती है। ध्वनि प्रदूषण उद्योगों में लगी बड़ी मशीनों, हॉर्न, शादी पार्टियों, प्रचार प्रसार, त्योहारों में लाउडस्पीकर को काम में लेना, बड़े वाहनों जैसे ट्रक, बस, ट्रैक्टर, बुलडोजर आदि के कारण ध्वनि प्रदूषण होता है।
(2) ध्वनि प्रदूषण पर निबंध (200 शब्द) – Noise Pollution
ध्वनि प्रदूषण पूरे विश्व की समस्या बन चुका है, 40 डेसीबल से ऊपर की तेज और असहनीय आवाज को ध्वनि प्रदूषण की श्रेणी में रखा जाता है। अगर इससे अत्यधिक सौर उत्पन्न होता है तो वह मनुष्य और जीव जंतुओं के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। अगर कोई व्यक्ति अपना ज्यादातर समय भीड़ भाड़ वाले इलाकों या फिर अत्यधिक सौर वाले क्षेत्र में बिताता है तो धीरे धीरे उसके सुनने की क्षमता क्षीण होती जाती है।
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ध्वनि प्रदूषण के कारण मनुष्य को मानसिक विकार जैसे चिड़चिड़ापन, सिरदर्द आदि हो सकते है और साथ ही शारीरिक विकार जैसे कि हाई ब्लड प्रेशर, रक्त प्रवाह की गति धीमी होना जिससे हार्ट अटैक का खतरा भी होता है। अत्यधिक शोर वन्य जीव जंतुओं की दिनचर्या पर भी प्रभाव डालता है उनकी आदतों में बदलाव आता है, खाने-पीने संबंधी समस्या और उनकी प्रजनन क्षमता पर भी प्रभाव पड़ता है।
अगर जल्द ही ध्वनि प्रदूषण का कोई समाधान नहीं किया गया तो यह है आने वाले भविष्य में बहुत बड़ी समस्या उत्पन्न कर सकता है। ध्वनि प्रदूषण बड़े कारखानों, उद्योगों, हवाई जहाजों ,रेलगाड़ियों, बड़ी मशीनों, निर्माण कार्य, लाउडस्पीकर, हॉर्न और वाहनों से होता है। ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिए उद्योगों को आबादी क्षेत्र से दूर रखना होगा, हॉर्न कम बजाना होगा, लाउडस्पीकरों का इस्तेमाल कम करना होगा, समय-समय पर बड़ी मशीनों की मरम्मत करनी होगी जिससे कि वह तेज आवाज न करें।
(3) ध्वनि प्रदूषण पर निबंध (400 शब्द) – Sound Pollution Essay in Hindi
ध्वनि प्रदूषण प्रदूषण का ही एक रूप है इसको सामान्य शब्दों में समझे तो हमारे वातावरण में जो भी असहनीय तेज आवाज उत्पन्न होती है वही ध्वनि प्रदूषण कहलाती है। अत्यधिक तेज आवाज का ज्यादातर बुजुर्गों और छोटे बच्चों पर ज्यादा असर पड़ता है। ध्वनि प्रदूषण बहरेपन का भी कारण होता है। यह धीरे-धीरे मानव के स्वास्थ्य को बिगाड़ता है जिससे मानव को इसका पता भी नहीं चलता और एक दिन उसकी मृत्यु हो जाती है।
वर्तमान में विज्ञान ने जितनी तेजी से तरक्की की है उतनी ही तेजी से ध्वनि प्रदूषण भी बढ़ा है क्योंकि बड़ी-बड़ी मशीनें, लाउडस्पीकर, हॉर्न विज्ञान की ही देन है। आजकल घर घर में TV और लाउडस्पीकर आ गए हैं जो कि दिनभर बचते रहते हैं और तीखी ध्वनि उत्पन्न करते रहते है जिससे पूरे वातावरण में शोर की मात्रा बढ़ जाती है।
जीवन की इस तेज रफ्तार में मानव सिर्फ अपनी वैभव विलासिता की वस्तुओं का उपभोग करने में लगा हुआ है, जिससे वह पर्यावरण में होने वाले प्रदूषण की ओर ध्यान नहीं दे रहा है। जैसे तेज ध्वनि प्रदूषण मानव द्वारा ही फैलाया जाता है और वही इसका शिकार भी बनता है। मानव जाति खुद के स्वास्थ्य के साथ-साथ हैं पशु पक्षियों के स्वास्थ्य से भी खिलवाड़ कर रहा है जो कि एक चिंताजनक विषय हैं।
ध्वनि प्रदूषण के कारण – Sound Pollution ke Karan
- मानव द्वारा लाउडस्पीकरों का अत्यधिक उपयोग करना।
- प्रेशर हॉर्न का उपयोग करना।
- उद्योग-धंधों में काम में आने वाली बड़ी मशीनों से उत्पन्न होने वाला शोर।
- शहरों में बढ़ते निर्माण कार्य।
- जनसंख्या वृद्धि।
- शहरों में बढ़ता ट्रैफिक जिसके कारण जाम की स्थिति होती है और एक ही जगह पर कई सारे वाहन रुकते हैं जिससे उनकी आवाज अत्यधिक मात्रा में बढ़ जाती है।
ध्वनि प्रदूषण के कुप्रभाव – Sound Pollution ke Kuparbhav
- अगर कोई व्यक्ति प्रतिदिन तेज आवाज के संपर्क में रहता है तो उसके सुनने की क्षमता धीरे-धीरे क्षीण होती जाती है, कई लोग तो बहरेपन का भी शिकार हो जाते है।
- ध्वनि प्रदूषण के कारण मनुष्य का स्वभाव में चिड़चिड़ापन रहता है और साथ ही उसे सिर दर्द जैसी समस्या भी रहती है।
- तेज आवाज से वन्यजीवों का भी जीवन संकट में पड़ जाता है इसका एक उदाहरण यह है कि समुद्र में सेनाओं द्वारा किए गए अभ्यास के कारण आज चोंचदार व्हेल मछली की प्रजाति मिटने की कगार पर है।
ध्वनि प्रदूषण को कम करने के उपाय – Sound Pollution ko kam Karne ke Upay
चूँकि ज्यादातर ध्वनि प्रदूषण मानव द्वारा ही फैलाया जाता है इसलिए जब तक मानव इस विषय पर प्रत्येक नहीं होगा तब तक है ध्वनि प्रदूषण कम होने वाला नहीं है।
- इसको कम करने के लिए लोगों को लाउडस्पीकरों का यूज कम करना होगा।
- और बेवजह हॉर्न बजाना कम करना होगा।
- उद्योग-धंधों को आबादी वाले क्षेत्रों से दूर स्थापित करना होगा।
- ट्रैफिक नियमों का पालन करना होगा।
- कम आवाज करने वाली मशीनों का उपयोग करना होगा।
(4) ध्वनि प्रदूषण पर निबंध (700 शब्द) – Dhwani Pradushan Par Nibandh
ध्वनि प्रदूषण हर जगह व्याप्त है इसको खत्म करना लगभग असंभव सा है क्योंकि सभी जीव इसी के माध्यम से वार्तालाप कर पाते है, जिसमें मनुष्य जाति भी शामिल है। ध्वनि प्रदूषण को खत्म तो नहीं किया जा सकता लेकिन कम जरूर किया जा सकता है जिससे कि पृथ्वी के जीवो पर इसका प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। हालांकि सरकार द्वारा इस को कम करने के लिए प्रयास किए जाते हैं लेकिन जब तक लोग स्वंय इसको कम करने के बारे में नहीं सोचेंगे तब तक ध्वनि प्रदूषण को कम नहीं किया जा सकता है।
जिस भी वस्तु या अन्य प्रक्रिया से तेज शोर उत्पन्न होता हो वह ध्वनि प्रदूषण की श्रेणी में आता है। भारत में बढ़ते शहरीकरण के कारण जनसंख्या का एक भाग शहरों में रहता है जिससे वहां पर बहुत ज्यादा भीड़ हो जाती है और जहां पर ज्यादा भीड़ होती है वहां पर शोर होना स्वाभाविक है और यह ध्वनि प्रदूषण को जन्म देता है।
ध्वनि प्रदूषण को मूलतः है दो भागों में बांटा गया है – प्राकृतिक ध्वनि प्रदूषण और अप्राकृतिक ध्वनि प्रदूषण।
प्राकृतिक ध्वनि प्रदूषण के कारण – Prakrtik Dhwani Pradushan
प्राकृतिक ध्वनि प्रदूषण पृथ्वी पर घटने वाली विभिन्न घटनाओं से उत्पन्न होता है। इसमें वे सभी घटनाएं शामिल हैं जिनसे किसी भी प्रकार की आवाज उत्पन्न होती हो।
- ज्वालामुखी का फटना – यह एक प्राकृतिक घटना है इससे बहुत ज्यादा मात्रा में शोर उत्पन्न होता है और साथ ही इससे वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण भी होता है।
- बादलों की गड़गड़ाहट – पृथ्वी के वातावरण में निरंतर मौसम बदलता रहता है जिस कारण बादल बनते हैं और इनकी गड़गड़ाहट के कारण बहुत बड़े क्षेत्र में शोर उत्पन्न होता है जो कि ध्वनि प्रदूषण का एक कारण बनता है।
- शेर का दहाड़ना, पक्षियों का चहचहाना, नदियों और झरनों की आवाज, पेड़ पौधों के हिलने से पैदा हुई सरसराहट, समुंदर की लहरों में उफान आने से पैदा हुई आवाज आदि से प्राकृतिक ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न होता है हालांकि इससे किसी को भी नुकसान नहीं होता है।
अप्राकृतिक ध्वनि प्रदूषण – APrakrtik Dhwani Pradushan
अप्राकृतिक ध्वनि प्रदूषण मूलतः मनुष्यों के द्वारा फैलाया जाता है। मनुष्य के द्वारा ही बड़े-बड़े आविष्कार किए गए हैं जिनसे ज्यादा मात्रा में सौर उत्पन्न होता है जैसे की रेलगाड़ी, हवाई जहाज, पनडुब्बी आदि है। आइए जानते हैं अप्राकृतिक ध्वनि प्रदूषण के क्या कारण है –
- जनसंख्या वृद्धि के कारण शोर उत्पन्न होता है।
- सुपर सोनिक (ध्वनि की रफ्तार से) रफ्तार से चलने वाले वायुयान अधिक मात्रा में शोर उत्पन्न करते है।
- प्रतिदिन सड़कों पर दौड़ने वाले यातायात के वाहन जैसे – स्कूटर, मोटरसाइकिल, कार, बस, ऑटो रिक्शा, ट्रैक्टर, ट्रक, जुगाड़ आदि से ध्वनि प्रदूषण होता है।
- निर्माण कार्य में लगी हुई मशीनरी जैसे क्रेन, बुलडोजर, निर्माण कार्य में काम आने वाले औजार आदि के द्वारा भी शोर उत्पन्न होता है।
- ट्रेन की पटरियों की आवाज और साथ ही उसके चलने पर लोहे के डिब्बो से आती आवाज, मेट्रो के चलने पर उत्पन्न होने वाला शोर, रेलगाड़ी का तेज आवाज वाला हॉर्न जिसकी आवाज 2 किलोमीटर तक सुनाई दे जाती है।
- घरों में काम में ली जाने वाली मशीनरी जैसे सिलाई मशीन, पंखा, कूलर, वॉशिंग मशीन इत्यादि से ध्वनि प्रदूषण होता है।
- प्रदूषण का एक कारण त्योहार और उत्सव पर की जाने वाली आतिशबाजी भी है।
ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव – Dhwani Pradushan ke Prabhav
- मनुष्य बहरेपन का शिकार हो जाता है।
- अत्यधिक ध्वनि के कारण चिड़चिड़ापन और सिर दर्द जैसी बीमारियां हो जाती है।
- रक्त का प्रवाह कम हो जाता है हार्ट अटैक आने की संभावना बढ़ जाती है।
- इससे मनुष्य का पाचन तंत्र भी प्रभावित होता है।
- जीव जंतुओं की दिनचर्या प्रभावित हो जाती है और साथ ही उनकी प्रजनन क्षमता पर भी प्रभाव पड़ता है।
- इसकी चपेट में बुजुर्ग और छोटे बच्चे जल्दी आते है। उनके लिए यह आवाजें बहुत कष्टकारी होती है।
ध्वनि प्रदूषण के रोकथाम के उपाय – Dhwani Pradushan ke Roktham ke Upay
ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए हमें अधिक मात्रा में पेड़ पौधे लगाने चाहिए क्योंकि पेड़ पौधे 10 से 15 डेसीबल की आवाज को रोक लेते है। हमें कम आवाज करने वाली मशीनों का उपयोग करना चाहिए। ज्यादा शोर करने वाले उद्योग-धंधों को साउंड प्रूफ इमारत में स्थापित करना चाहिए। पुरानी और खस्ताहाल वाहनों का उपयोग नहीं करना चाहिए। लाउडस्पीकरों का उपयोग कम करना चाहिए। अनावश्यक हॉर्न नहीं बजाना चाहिए।
(5) ध्वनि प्रदूषण पर निबंध विस्तार पूर्वक (3000 शब्द) Noise Pollution Full Essay in Hindi
ध्वनि प्रदूषण क्या है – Dhwani Pradushan Kya Hai
वह कोई भी वस्तु जिसके हिलने डुलने से किसी भी प्रकार की तेज आवाज आए वह ध्वनि प्रदूषण की श्रेणी में आता है। पेड़ पौधों की सरसराहट, मशीनों की आवाज, गाड़ियों की आवाज, हॉर्न की आवाज, मनुष्य की बात करने की आवाज, लाउडस्पीकर की आवाज, नदियों झरनों की आवाज आदि से ध्वनि प्रदूषण होता है। जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, वायु प्रदूषण की तरह ही तेज शोर को ध्वनि प्रदूषण का नाम दिया गया है।
सबसे पहले संयुक्त राष्ट्र संघ ने सन 1972 में तेज और असहनीय आवाज को ध्वनि प्रदूषण का अंग माना है। ध्वनि प्रदूषण दिन-प्रतिदिन बहुत तेजी से बढ़ता जा रहा है। ध्वनि प्रदूषण का मुख्य कारण भी मानव ही है क्योंकि मानव द्वारा जितनी वैज्ञानिक तरक्की की गई है उसके द्वारा जितने भी मशीनें और वाहन बनाए गए हैं वह सभी बहुत ज्यादा मात्रा में ध्वनि उत्पन्न करते है। जिसके कारण हर साल ध्वनि प्रदूषण का ग्राफ बढ़ता जा रहा है।
अगर ध्वनि प्रदूषण को जल्द ही काम नहीं किया गया तो लोग चिड़चिड़ेपन और बहरेपन का शिकार हो सकते है। शोर कोई आधुनिक समस्या नहीं है यह पुरातन काल में भी मौजूद थी। 25 वर्ष पुराने यूनान साइबर नाम की कॉलोनी में भी ध्वनि प्रदूषण से बचने के लिए कारगर उपाय किए हुए थे। जिसका मतलब यह है कि जब से सृष्टि की रचना हुई ध्वनि प्रदूषण भी तब से ही प्रारंभ हो गया था।
ध्वनि प्रदूषण के कारण – Dhwani Pradushan ke karan
ध्वनि प्रदूषण धीमे जहर के समान है क्योंकि यह रोज मानव को धीरे-धीरे मृत्यु की ओर ले जाता है। ध्वनि प्रदूषण के कारण मनुष्य थका हुआ महसूस करता है और साथ ही वह चिड़चिड़ेपन का शिकार हो जाता है जिसके कारण उसे मानसिक परेशानी होने लगती है। जैसे कि सर दर्द, यादाश्त कमजोर हो जाना और भी कई मानसिक परेशानियां बढ़ जाती हैं जिसके कारण मनुष्य का जीना मुश्किल हो जाता है वह धीरे धीरे मृत्यु के करीब जाता रहता है।
अत्यधिक शोर-शराबे के कारण देखा गया है कि लोग बहरेपन का भी शिकार हो जाते है। ध्वनि प्रदूषण ज्यादातर बड़े शहरों में होता है क्योंकि अगर देखा जाए तो दुनिया के ज्यादातर लोग शहरों में ही रहते हैं और चरितर उद्योग धंधे शहरों में होने के कारण बहुत ज्यादा शोर शराबा होता है। शहरों में जनसंख्या भी बहुत ज्यादा होती है जिससे वाहन और मशीनों की संख्या भी ज्यादा बढ़ जाती है और उतना ही ज्यादा शोर उत्पन्न होता है।
ध्वनि प्रदूषण धीरे-धीरे महामारी का रूप धारण कर चुका है जो कि मानव जीवन के साथ-साथ सभी जीवो पर कुप्रभाव डालता है। मनुष्य द्वारा फैलाए गए शोर-शराबे के कारण केवल मनुष्य ही परेशान नहीं होते इससे वन्य जीव जंतु भी बहुत प्रभावित होते है वे शोर के कारण डर जाते है और इससे उनकी दिनचर्या प्रभावित होती है।
आइए जानते है कि ध्वनि प्रदूषण के मुख्य कारण क्या है –
उद्योग धंधे –
उद्योग-धंधों के कारण बहुत ज्यादा और उत्पन्न होता है, आपने देखा होगा कि कल-कारखानों, लघु उद्योग और बड़े उद्योगों में बड़ी-बड़ी मशीनों का प्रयोग किया जाता है जिनके चलने पर बहुत ज्यादा शोर उत्पन्न होता है और इसी शोर के कारण ध्वनि प्रदूषण बढ़ जाता है। इन उद्योगों में प्रमुख रुप से ताप विद्युत गृहों में लगे ब्यायलर, लोहा बनाने वाले कारखाने, टरबाइन, मशीनों के कलपुर्जे बनाने वाले कारखाने, लकड़ियों की कटाई करने वाले कारखाने आदि में अत्यधिक शोर उत्पन्न होता है।
लाउडस्पीकर –
आपने देखा होगा कि वर्तमान में लोग किसी भी प्रकार के प्रचार प्रसार के लिए लाउडस्पीकर को काम में लेते है। कुछ लोग तो अपनी आवाज को दूर तक पहुंचाने के लिए ऐसे स्पीकरों को काम में लेते है जिनकी आवाज सीधे कानों में चुभती है। वर्तमान समय में लोग शादियों, पार्टियों, धार्मिक आयोजनों, मेलो, विज्ञापनों के प्रचार-प्रसार,
बड़ी चुनावी सभाओं आदि में बढ़-चढ़कर लाउडस्पीकर को काम में लेते है। इन लाउडस्पीकरों की आवाज इतनी तेज होती है कि मानव के कानों के पर्दे फट सकते है, लोग बहरे हो सकते हैं साथ ही लोग बेचैनी का भी शिकार हो सकते हैं।
आजकल तो लोग घरों में भी बड़े-बड़े स्पीकर लगा कर सकते हैं और रोज उन्हें अत्यधिक आवाज में बजाते हैं जिससे आस पास में रहने वाले लोग प्रभावित होते है। लाउडस्पीकर मनुष्य और जीव जंतुओं के लिए बहुत घातक हैं। अगर जल्द ही इन पर कोई रोक नहीं लगाई जाती है तो ज्यादातर लोग मानसिक बीमारियों के शिकार हो जाएंगे।
निर्माण कार्य –
हमारा देश हो या विश्व का कोई भी देश आज सभी देश किसी ना किसी अन्य देश से ज्यादा विकसित होने की कोशिश कर रहा है। अत्यधिक विकसित होने की चाह में निर्माण कार्य भी बहुत तेजी से हो रहा है। निर्माण कार्य में बड़ी-बड़ी मशीनों, क्रेन आदि को काम में लिया जाता है जिसके कारण जब यह मशीनें चलाई जाती हैं तो इनके कलपुर्जों से बहुत तीखी और कानों में चुभने वाली आवाज निकलती है।
निर्माण कार्य भारत जैसे विकासशील देशों में बहुत ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है और यह दिन हो या रात चलता ही रहता है जिसके कारण आसपास में रहने वाले लोग मानसिक बीमारियों का शिकार हो जाते है। निर्माण कार्य में जब बड़ी मशीनों का काम में लिया जाता है तब वहां के कर्मचारी तो अपने कानों की सेफ्टी के लिए कानों को ढक लेते हैं लेकिन वहां के आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले लोग यह नहीं कर पाते है।
जिसके कारण धीरे-धीरे उनके सुनने की क्षमता प्रभावित होती है। इसके साथ ही आजकल सड़कों का निर्माण अधिक तेजी से हो रहा है और साथ ही शहरों में सीवरेज जैसे कार्य प्रगति पर है इन कार्यों से भी ध्वनि प्रदूषण होता है।
वाहन –
हमारे देश में छोटे बड़े वाहनों को मिलाकर वाहनों की संख्या बहुत ज्यादा बढ़ गई है।वाहन भी अपनी क्षमता के अनुसार कम ज्यादा ध्वनि प्रदूषण करते है। हमारे भारत देश में वर्ष 1950 में कुल वाहनों की संख्या करीब 30 लाख थी। और जैसे-जैसे हमारा देश विकसित हो रहा है वाहनों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। वर्ष 2016 में किए गए एक सर्वे के अनुसार हमारे देश में प्रतिदिन छोटे बड़े वाहनों को मिलाकर लगभग 58,000 वाहनों का पंजीकरण किया जाता है।
संपूर्ण भारत में वर्ष 2015 के आंकड़ों के अनुसार 210023289 वाहन पंजीकृत हैं। वाहन पंजीकरण के अनुसार वर्ष 2015 तक महाराष्ट्र राज्य में लगभग 25562175 वाहनों का पंजीकरण हो चुका है जो कि देश में पहले स्थान पर है और लगभग देश के 13% वाहन महाराष्ट्र राज्य में ही है। जिस तरह से वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है उनसे शोर भी उतना ही बढ़ता जा रहा है जिसके कारण ध्वनि प्रदूषण अपने चरम पर हैं।
आजकल लोग अपने वाहनों में तीखी आवाज वाले हॉर्न लगवाते है और साथ ही ज्यादा आवाज करने वाले वाहन खरीदना पसंद करते हैं। सबसे ज्यादा शोर मचाने वाले वाहन, रेलगाड़ियां, जेट प्लेन, बसे, जुगाड़ वाले वाहन आदि से सबसे ज्यादा शोर उत्पन्न होता है।
आतिशबाजी –
हमारे भारत देश त्योहारों वाला देश है, जिसके कारण हमारे देश में बहुत ज्यादा त्यौहार मनाए जाते हैं और लोग अपनी खुशियों को व्यक्त करने के लिए पटाखे चलाकर अपनी खुशियां जाहिर करते हैं। हमारे देश उत्सवो, त्योहारों
शादियों, पार्टियों, सांस्कृतिक कार्यक्रम, मेलो, मैच या चुनाव जीतने की खुशी में लोग बड़ी मात्रा में आतिशबाजी करते है। आतिशबाजी को बढ़ावा देने के लिए आजकल बड़े बड़े पटाखों का निर्माण होने लगा है जो की बहुत ज्यादा मात्रा में वायु प्रदूषण के साथ-साथ ध्वनि प्रदूषण भी करते हैं। दिवाली के त्यौहार पर अधिक मात्रा में आतिशबाजी की जाती है.
इन पटाखों की फटने की आवाज से बुजुर्गों एवं छोटे बच्चों को मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है। हमारे देश के सबसे बड़े त्यौहार दीवाली पर 2015 में किए गए एक सर्वे के अनुसार पटाखों के फटने के कारण 123 डेसीबल तक आवाज चली जाती है। जबकि 80 डेसिबल से ज्यादा आवाज होने पर मनुष्य बहरेपन का शिकार हो सकता है।
तेज आवाज में बात करना –
आजकल कुछ लोग तेज आवाज में बात करते हैं जिसके कारण ध्वनि प्रदूषण होता है। कहीं पर लोग सभा में भाषण देने के लिए जोर-जोर से बातें करते हैं तो कहीं पर लोग हड़ताल करते हैं वहां पर जोर जोर से नारे लगाते है।
इन सब की आवाज बहुत मात्रा में होती है जिसके कारण यह है ध्वनि प्रदूषण की श्रेणी में आता है।
प्राकृतिक घटनाएं –
हमारी पृथ्वी पर प्रतिदिन कोई न कोई अवांछित घटनाएं घटती रहती है बादलों का गरजना, ज्वालामुखी का फटना, भूकंप आना, समुंद्र की लहरों में उफान आना, नदियों का तेज गति से बहना, आंधी या तूफान आना, बारिश आना इन सभी घटनाओं के कारण बहुत तेज आवाज उत्पन्न होती है। जिससे ध्वनि प्रदूषण होता है।
अन्य कारण –
ध्वनि प्रदूषण होने की अन्य विभिन्न कारण है जैसे कि हड़तालों का होना, राजनैतिक रेलियाँ, जनसभा आंधी में अधिक मात्रा में लोग इकट्ठे होते है जिसके कारण अत्यधिक आवाज उत्पन्न होती है और यह ध्वनि प्रदूषण का एक कारण बनती है। इसी प्रकार भीड़ भाड़ वाले इलाके जैसे बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, हवाई अड्डा, सरकारी कार्यालयों, स्कूलों, कॉलेजों, अस्पतालों, पोस्ट ऑफिस, बैंक
आदि में अधिक मात्रा में लोग जमा होते है और एक दूसरे से वार्तालाप करते हैं जिससे धीरे धीरे शोरगुल में वृद्धि होती है जिसके कारण हमें ध्वनि प्रदूषण का सामना करना पड़ता है। इसका एक अन्य कारण भी है भीड़ भाड़ वाले इलाकों में अक्सर जाम लगता रहता है जिसके कारण अत्यधिक मात्रा में वहां पर वाहन एकत्रित हो जाते हैं और साथ ही लोग भी एकत्रित हो जाते हैं जिससे वाहनों और लोगों का शोर इतना ज्यादा हो जाता है कि यह ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न करते हैं।
ध्वनि प्रदूषण के दुष्प्रभाव – Dhwani Pradushan ke Dushparinam
ध्वनि प्रदूषण हमारे जीवन का एक हिस्सा बन चुका है जिसे निकाला जाना तो असंभव है लेकिन कम जरूर किया जा सकता है। लेकिन हम इस दिशा में कोई कार्य नहीं कर रहे हैं बल्कि दिन प्रतिदिन शोरगुल बढ़ाने के लिए नए-नए तरीके खोजते रहते है। ध्वनि प्रदूषण मानव जाति के लिए एक धीमा जहर हैं जोकि मानव को धीरे-धीरे मिट्टी की ओर ले जाता है।
ध्वनि प्रदूषण का दुष्प्रभाव केवल मानव जाति तक ही सीमित नहीं है इसका प्रभाव अन्य जीव जंतुओं पर भी पड़ता है। आइए जानते हैं कि ध्वनि प्रदूषण के कारण क्या क्या कुप्रभाव होते है –
चिड़चिड़ापन –
एक सर्वे के अनुसार जो व्यक्ति अपना ज्यादातर वक्त शोर-शराबे वाले इलाके में बिताता है, इसके विपरीत शांत क्षेत्र में रहने वाले व्यक्ति से ज्यादा गुस्से में होता है और इसके साथ ही वह है चिड़चिड़ेपन का भी शिकार हो जाता है। वह व्यक्ति छोटी-छोटी बात पर आग बबूला हो जाता है जिससे कि भविष्य में उसे कई प्रकार की मानसिक बीमारियां और साथ ही सारी बीमारियां भी हो जाती है। मनुष्य को कम से कम हफ्ते में एक दिन शांत क्षेत्र में रहना चाहिए।
नींद ना आना –
मनुष्य के लिए नींद आना बहुत ही जरूरी होता है क्योंकि इससे वह दिनभर की थकान पूरी करता है, अगर उसे पर्याप्त मात्रा में नींद नहीं मिलती है तो उसका मन किसी भी कार्य को करने में नहीं लगता है। और अगर ज्यादा समय तक शोरगुल वाले क्षेत्रों में रहता है तो नींद मैं कमी आना स्वभाविक है। वैज्ञानिक शोध के अनुसार रात को सोते समय 40 डेसीबल से ऊपर आवाज नहीं होनी चाहिए नहीं तो किसी भी व्यक्ति को सोने में समस्या होती है और उसे नींद नहीं आने जैसी बीमारी भी हो सकती है जो कि मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही ज्यादा हानिकारक हैं।
बहरापन –
एक सर्वे के अनुसार अगर कोई व्यक्ति प्रतिदिन है 90 डेसीबल से अधिक आवाज वाले क्षेत्र में रहता है या काम करता है तो धीरे धीरे उसे सुनाई देना कम हो जाता है। कम सुनाई देने की समस्या को कभी ना कभी जीवन में आपने भी महसूस किया होगा जब आप शादी या पार्टियों में जाते हैं तो वहां पर लाउडस्पीकर बताए जाते हैं और अगर आप लाउडस्पीकर के पास कुछ समय बिता लेते हैं तो उसके बाद किसी शांत क्षेत्र में जाते हैं तो आपने महसूस किया होगा कि आपके कानों में एक अलग सा सूनापन महसूस होता है और आपको कुछ समय के लिए कम सुनाई देता है।
अगर कोई व्यक्ति ज्यादातर समय अपना भीड़भाड़ वाले इलाकों में बताता है तो वह है बहरेपन का भी शिकार हो सकता है।
मानसिक विकार –
ध्वनि प्रदूषण के कारण मानसिक विकार भी हो सकते हैं जैसे कि प्रतिदिन सर दर्द रहना, किसी काम में मन नहीं लगना, एकाग्रता का कम होना, मानसिक संतुलन बिगड़ना आदि विकार अत्यधिक शोर वाले या भीड़ भाड़ वाले इलाके में रहने से हो सकता है। इसके प्रति हमें सदैव सचेत रहना चाहिए। ध्वनि प्रदूषण के कारण मनुष्य गुस्से से भरा रहता है और इस कारण वह अन्य व्यक्तियों से झगड़ा करता रहता है।
शारीरिक समस्या –
जी हां आपने सही सुना ध्वनि प्रदूषण के कारण हमें कई प्रकार की शारीरिक बीमारियां भी हो सकती है। अत्यधिक शोर के कारण हमारे कान के पर्दे (Hearing and Hair Cells) फट सकते हैं या फिर उन्हें इतना नुकसान हो सकता है कि हमें कम सुनाई देना प्रारंभ हो जाए। इसके अतिरिक्त अगर कोई व्यक्ति अपना ज्यादातर समय अत्यधिक शोर वाले क्षेत्र में बिताता है तो उसको दिल संबंधी बीमारियां और साथ ही ब्लड प्रेशर की भी शिकायत हो सकती है।
हाल ही में किए गए एक सर्वे के अनुसार ध्वनि प्रदूषण के कारण मानव के हृदय की गति कम हो सकती है और साथ ही खून का भाव भी कम हो जाता है जिससे हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है। और अगर हमारी शरीर में सही से रक्त प्रवाह नहीं होगा तो अन्य शारीरिक बीमारियां भी हमें हो सकती हैं।
शोर का जीव जंतुओं पर कुप्रभाव –
अत्यधिक शोर के कारण हमारे वातावरण में रहने वाले हैं पशु पक्षियों को भी समस्या होती है। आपने देखा होगा कि कई पशु लाउडस्पीकर चलते ही इधर-उधर को कूदने लग जाते है इससे साफ होता है कि उनको तेज आवाज से बहुत परेशानी होती है। ध्वनि प्रदूषण के कारण पशु पक्षियों के खाने पीने में, प्रजनन क्षमता, रहन सहन में काफी बदलाव आ जाता है। समुंद्र में सेनाओं के लगातार अभ्यास के कारण चोंचदार व्हेल नामक प्रजाति का अस्तित्व खतरे में है।
ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रण में करने के उपाय – Noise Pollution ko Niyantran me Karne ke Upay
- सर्वप्रथम हमें लोगों को ध्वनि प्रदूषण के बारे में जागरुक करना होगा, उन्हें बताना होगा कि ध्वनि प्रदूषण के कारण सिर्फ मानव जीवन ही नहीं जीव जंतुओं का जीवन भी प्रभावित हो रहा है।
- ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिए जगह-जगह शांतिपूर्ण तरीके से प्रचार प्रसार करके लोगों को जागरुक करना चाहिए।
- सड़कों की चौड़ाई बढ़ाई जानी चाहिए जिससे जाम की स्थिति पैदा ना हो और शोर कम उत्पन्न हो।
- हरियाली को बढ़ावा देना चाहिए एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि जहां पर ज्यादा पेड़ पौधे होते हैं वहां पर शोर का प्रभाव 15 डेसीबल तक कम हो जाता है।
- औद्योगिक क्षेत्रों को आबादी क्षेत्रों से दूर रखना चाहिए।
- प्रेशर वाले हॉर्न का उपयोग बंद किया जाए और साथ ही लोगों को पाबंद किया जाए कि वह बार-बार बिना किसी कारण के हॉर्न ना बजाए।
- हवाई अड्डों को आबादी वाले क्षेत्रों से दूर रखना चाहिए और साथ ही हवाई जहाजों पर रूट भी ऐसा होना चाहिए कि वह कम से कम आबादी वाले क्षेत्रों पर उड़ान भरे।
- बड़े बड़े वाहनों का भीड़ भाड़ वाले इलाके में प्रवेश कम किया जाए।
- शादी, त्यौहार, उत्सव, मेला, पार्टियों, सभा स्थल आदि में लाउडस्पीकर को काम में न लिया जाए।
- रेलगाड़ी एंव उनकी पटरियों की मरम्मत समय-समय पर की जाए जिससे कि ध्वनि प्रदूषण कम हो।
- पुराने वाहनों के चलाने पर रोक लगानी चाहिए, क्योंकि समय के साथ उनकी हालत खराब हो जाती है और वह चलने पर अत्यधिक आवाज करने लग जाते है।
- सार्वजनिक स्थलों के आसपास लाउडस्पीकर और हॉर्न बजाने पर रोक लगानी चाहिए।
- उद्योगों से निकलने वाले चोर को कम करना चाहिए और साथ ही पुरानी हो चुकी मशीनरी को भी नई डिजाइन करके कम शोर वाली बनानी चाहिए। ज्यादा शोर करने वाली औद्योगिक इकाइयों को साउन्ड प्रूफ बनाया जाए।
- आबादी क्षेत्र से अवैध उद्योगों को हटाना चाहिए।
- रात के समय लाउडस्पीकर बजाने पर रोक लगानी चाहिए।
- लोगों को ट्रैफिक नियम पालन करने के लिए जागरुक किया जाना चाहिए क्योंकि ज्यादातर यह सामने आया है कि लोगों की लापरवाही के कारण जाम की स्थिति पैदा होती है और लोग फिर हॉर्न पे हॉर्न बजाने लग जाते हैं जिससे अधिक मात्रा में ध्वनि प्रदूषण होता है।
- रात के समय में आबादी वाले क्षेत्रों में निर्माण के ऊपर रोक लगानी चाहिए।
- युवाओं को लाउडस्पीकर का यूज नहीं लेने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
- ध्वनि प्रदूषण पर नए कानून बनाकर रोक लगानी चाहिए।
- अत्यधिक आवाज करने वाले विस्फोटक पटाखों को काम में नहीं लेना चाहिए।
ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम के लिए कानून – Noise Pollution ki Roktham ke Kanoon
- 14 फरवरी 2002 केंद्र सरकार ने पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम 1986 के तहत सार्वजनिक स्थलों पर बढ़ते ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000 को अधिनियमित क्या है। इसके तहत सार्वजनिक स्थलों पर लाउडस्पीकर नहीं बजाया जा सकता है।
- 2010 में इस नियम में संशोधन करते हुए अत्यधिक ध्वनि उत्पन्न करने वाले उपकरणों पर रोक लगा दी गई। शोर नियम 200 के अनुसार अगर किसी को लाउडस्पीकर बजाना है तो उसको पहले जिला मजिस्ट्रेट, पुलिस आयुक्त और पुलिस उपाधीक्षक स्तर या उससे उपर स्तर के अधिकारी से अनुमति लेनी होगी।
उपसंहार –
अगर ध्वनि प्रदूषण को कम करने के उपायों के बारे में जल्द ही कोई ठोस कदम उठाए नहीं गए तो यह विनाश का कारण बन सकता है। इसलिए हमें इसके रोकथाम के लिए प्रचार प्रसार करना चाहिए और साथ ही लोगों को जागरूक भी करना चाहिए की ध्वनि प्रदूषण होने के कारण हमें और वातावरण को कितना नुकसान होता है।
हमारी सरकार द्वारा तो प्रयास जारी है लेकिन जब तक हम स्वयं कुछ नहीं करेंगे तब तक ध्वनि प्रदूषण कम होने वाला नहीं है। ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिए सरकार ने कई नियम बनाए गए हैं लेकिन इनको अमल में नहीं लाया जा रहा है जिसके कारण दिन-प्रतिदिन यह बढ़ता ही जा रहा है।
इसको रोकने के लिए हमें ज्यादा से ज्यादा पेड़ पौधे लगाने चाहिए, पेड़ पौधे लगाने के ध्वनि प्रदूषण तो कम होगा ही साथ ही वायु प्रदूषण भी कम होगा।
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