Bhangarh Fort History in Hindi : भानगढ़ का किला भारत के राजस्थान राज्य में अलवर जिले के भानगढ़ शहर में स्थित है. इस किले का निर्माण 16वीं शताब्दी में आमेर के राजा भगवंत दास ने यहां किले का निर्माण करवाया था और अपने पुत्र माधोसिंह, जो मुगल बादशाह अकबर के नवरत्न मानसिंह का छोटा भाई था को अकबर की सहमति से यहां का शासक बनाया था.
राजा मानसिंह ने इस किले का निर्माण अपने छोटे भाई माधो सिंह के लिए करवाया था. यह किला पूरी दुनिया में भूतिया किले के नाम से भी प्रसिद्ध है. चूँकि लोगों का मानना है कि इस किले में आत्माएं निवास करती हैं. इस किले को भारत के भूतिया स्थानों में पहला स्थान प्राप्त है.
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Bhangarh Fort History in Hindi
जब भानगढ़ शहर को बसाया गया था तब इसकी जनसंख्या करीब 10000 थी. इस किले का निर्माण बड़े-बड़े पत्थरों से किया गया हैं. जिनमें सुंदर कलाकृतियों की कारीगरी भी की गई है. यह आज भी राजपूती महानता को प्रदर्शित करता है.
यह किला भी अपने मूल रूप में है लेकिन इसकी ऊपरी मंजिल देखभाल ने होने के कारण खंडहर में तब्दील हो चुकी है. लेकिन इस का निचला भाग अभी भी पूरी तरह सुरक्षित है. जिसको देखने प्रतिदिन कई पर्यटक आते हैं.
भानगढ़ के मुख्य अवशेषों में प्राचीर, द्वार, बाजार, हवेलिया, मंदिर, शाही महल, छतरिया, मकबरा आदि है. मुख्य मंदिरों में गोपीनाथ, सोमेश्वर, केशवराय एवं मंगला देवी है जो नागर शैली में बने हुए हैं. शाही महल सात मंजिला माना जाता है परंतु अब इसकी चार मंजिले ही शेष बची हैं इसमें बने मंदिरों की स्थिति बहुत ही अच्छी है लेकिन कुछ मंदिरों में अब हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां नहीं है.
भानगढ़ फोर्ट की कहानी | Bhangarh Fort Story in Hindi
यह किला तीन तरफ से अरावली पर्वतमाला के पहाड़ियों से घिरा हुआ है. जो कि एक अच्छे राज्य की स्थापना के लिए बहुत ही उपयुक्त स्थान है. चूँकि यह किला तीनों तरफ से पहाड़ियों से घिरा है इसलिए इस किले पर हमला करना बहुत ही कठिन है. यह पहाड़ियां इस किले की सुरक्षा का काम कर रही हैं, सरहदों का काम कर रही है. इस किले में प्रवेश करने के लिए कुल 5 द्वार है जिनमें से एक मुख्य द्वार है.
इसके दरवाजों का नाम उत्तर से दक्षिण की ओर – अजमेरी, लाहोरी, हनुमान पोल, बारी और दिल्ली गेट है. इस किले की नीव बहुत ही मजबूत और बड़े पत्थरों से रखी गई है जिसके कारण यह 500 सालों के बाद भी बिना किसी मरम्मत के मजबूती से खड़ा हुआ है. भानगढ़ किले के मुख्य महल में प्रवेश करने के लिए जो मुख्य दरवाजा था अब वह टूट गया है. जिस के स्थान पर भारत सरकार ने एक लोहे की सलाखों का गेट लगवा दिया है.
भानगढ़ किले में देखने लायक स्थल
हनुमान मंदिर
भानगढ़ के किले में प्रवेश करते ही हनुमान जी का मंदिर आता है, जिस पर माथा टेक कर ही लोग आगे किले की ओर बढ़ते हैं. इस मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति रखी हुई है और यहां पर रोज पूजा होती हैं.
मोड़ो की हवेली
भानगढ़ किले में हनुमान जी के मंदिर के बाद कुछ पुरानी मकानों के अवशेष दिखाई देते हैं लेकिन कुछ ही दूरी पर चलने पर एक दो मंजिला इमारत दिखाई देती है जिसको मोड़ो की हवेली कहा जाता है. जो कि चूना पत्थर से बनी हुई है. और इसमें कुछ कमरे हैं और एक दो बड़े बरामदे भी हैं. इसमें एक खुफिया गुफा का रास्ता भी बना हुआ है जो कि अब बंद हो चुका है.
मुख्य बाजार
मोड़ो की हवेली से कुछ ही दूर चलने पर कुछ और अवशेष दिखाई देते हैं जिसको मुख्य बाजार कहते हैं. जहां पर किसी जमाने में भानगढ़ शहर का बाजार लगा करता था.
इस बाजार में उस जमाने में भी कुछ दुकाने दो मंजिला भी हुआ करती थी लेकिन समय की मार के कारण अब सिर्फ उनके अवशेष ही बचे हैं.
मंगला देवी मंदिर
मंगला देवी के मंदिर के बाहर एक बरामदा बना हुआ है जो कि 14 पत्थर के पिल्लरो पर टिका हुआ है. के बरामदे के ऊपर एक गुंबद बना हुआ है. जिसके नीचे बेहद ही सुंदर पत्थरों की नक्काशी की गई है.
मंदिर के मुख्य दरवाजे पर पत्थरों को तरासकर उनमें हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां उकेरी गई हैं. अब इस मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है.
केशव राय मंदिर
केशव राय के मंदिर के बाहर एक बरामदा बना हुआ है जो कि 12 पत्थर के पिल्लरो पर टिका हुआ है. इसके बरामदे पर भी एक बहुत बड़ा गुंबद बना हुआ है जिसके नीचे साधारण पत्थर एक कतार में लगाए गए हैं.
यह मंदिर देखने में बहुत ही साधारण लगता है लेकिन एक बड़ी जगह में फैला हुआ है. केशवराय के मंदिर में भी कोई मूर्ति नहीं है.
गोपीनाथ मंदिर
भानगढ़ किले के दूसरे गेट में प्रवेश करते ही जो मंदिर आता है उसे गोपीनाथ मंदिर कहते हैं. यह मंदिर बहुत ही बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है. इसमें प्रवेश करने के लिए 27 सीढ़ियां हैं और उसके बाद एक बड़ा चौक आता है. उसके बाद मंदिर का बरामदा है. इस मंदिर के मुख्य दरवाजे पर मार्बल के पत्थरों को तरासकर उनमें हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां उकेरी गई हैं
जो कि देखने में बहुत ही सुंदर लगती हैं. इस मंदिर के अंदर भी मूर्ति नहीं है. इसके गुंबद के नीचे पत्थरों पर बेहद सुंदर कलाकृतियां उकेरी गई हैं. जिनमें हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां भी बनाई गई है. कैमरा उनके को सहारा देने के लिए 18 पत्थर के पिल्लर हैं.
दीवान ए खास
इस किले में एक ऐसा भी स्थान है जहां पर राजा और सभी मंत्रीगण बैठकर किसी विषय पर चर्चा किया करते थे. इसमें मंत्रियों के बैठने के लिए काले पत्थर की शिलाए भी लगाई गई है.
इसके मध्य में एक छतरी है जिस को सहारा देने के लिए चार पत्थर के पिल्लर लगाए गए हैं. इसके नीचे राजा बैठा करते थे. इसको दीवान ए खास भी कहा जाता है क्योंकि यहां पर राजा खास लोगों से ही मुलाकात करते थे.
दीवान-ए-आम
दीवाने आम की इमारत अब एक खंडहर का रुप ले चुकी है लेकिन इसमें राजा के बैठने के लिए एक सिंघासन था और उसके आगे बहुत सी जगह थी.
जहां पर आम लोग आकर अपनी फरियाद सुनाते थी और राजा उन फरियादो का निवारण करते थे.
सोमेश्वर मंदिर
यह मंदिर किले के बाई और बनाया गया है. इसमें प्रवेश करने के लिए 14 सीढ़ियां बनी हुई है. इस में प्रवेश करते हैं भगवान शिव के वाहन नंदी की मार्बल के पत्थर की मूर्ति लगी हुई है. और मुख्य मंदिर में सफेद मार्बल के पत्थर का एक शिवलिंग स्थापित किया हुआ है. सोमेश्वर मंदिर के दाएं तरफ एक बहुत बड़ा पानी का कुंड है
जिसमें आज भी पहाड़ियों से ताजा पानी आता है. इस मंदिर पर एक बहुत बड़ा गुंबद बना हुआ है जिस पर हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां उकेरी गई हैं. सोमेश्वर मंदिर में रोज पूजा होती है. यहां के पंडित का दावा है कि वह सिंधिया सेवड़ा के ही वंशज हैं. सोमेश्वर मंदिर में सोमवार के पूरे दिन पंडित इस मंदिर में रहते हैं और बाकी दिन सुबह पूजा करते हैं चले जाते हैं.
रत्नावती का मंदिर
रानी रत्नावती की मृत्यु के बाद इसके लिए के सबसे ऊपरी भाग में रानी रत्नावती का मंदिर बनाया गया है. लेकिन उसमें किसी प्रकार की कोई मूर्ति नहीं है. कई लोग वहां पर पूजा करने भी आते हैं लोग कहते हैं कि इस मंदिर में रोज रात को रत्नावती इस मंदिर में आती है.
किले में सूर्यास्त के बाद प्रवेश निषेध
इस किले के भूतिया होने के कारण भारत सरकार के आदेशानुसार शाम के 5:00 बजे बाद में इस किले में किसी भी व्यक्ति के लिए रुकने की मनाई है. इस किले के चारों ओर आर्कियोंलाजिकल सर्वे आफ इंडिया (एएसआई) की टीम मौजूद रहती हैं. भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा इस खंडर हो चुकी किले को अब संरक्षित कर दिया गया हैं.
अब इसकी देखभाल भारत सरकार द्वारा की जाती है. इस किले की भूतिया कहानियों का इतना असर है कि भारत सरकार ने अपने पुरातत्व विभाग का ऑफिस भी इस से 1 किलोमीटर की दूरी पर बनवाया है.
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Bhanghag ki Kahani sahi nhi hai