Jallianwala Bagh Hatyakand in Hindi : यह बात उस समय की है जब हिन्दुस्तानियों ने अंग्रेजो की प्रथम विश्व युद्ध में तन मन धन से सहायता की थी. और इसके बदले ब्रिटिश हुकूमत ने वादा किया था की वे उन्हें बेहतर सुविधाए देंगे लेकिन हुआ इसके सब कुछ उलट लोगो को अंग्रेजो का अत्याचार सहना पड़ा और उनकी दमकारी नीतियों को सहते हुए गोलिया खानी पड़ी. और अंग्रेजो ने जलियांवाला बाग जैसे हत्याकांड को भी अंजाम दिया था. आइये विस्तार से जानते है जलियांवाला बाग हत्याकांड के बारे में –
विषय-सूची
Jallianwala Bagh Hatyakand in Hindi
जलियांवाला बाग हत्याकांड दिनांक | 13 अप्रेल 1919 |
स्थान | जलियांवाला बाग, अमृतसर (पंजाब) |
शहीदों की संख्या | 484 |
हंटर जाँच समिति का गठन | अक्टूबर 1919 |
हत्याकांड का आर्डर देने वाला अधिकारी | ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर |
कितनी गोलियां चली | 1650 राउंड (लगभग) |
जलियांवाला बाग हत्याकांड के कारण (Jallianwala Bagh Hatyakand ke Kaaran)-
(i) गदर आंदोनल का प्रभाव – गदर पार्टी की स्थापना 21 अप्रेल 1913 को सानफ्रांसिस्को (अमेरिका) में की गयी थी इस पार्टी का एक ही उदेश्य था की भारत से ब्रिटिश हुकूमत को उखड फेकना. इसके लिए इन्होने 21 फरवरी 1915 को अंग्रेजो के विरुद्ध योजना बनाई थी लेकिन इस योजना की जानकारी अंग्रेजो को पता चल गयी जिस कारण सभी नेता और आंदोलनकारियो को गिरफ्तार कर लिया गया जिनमे से 42 आंदोलनकारियो को फांसी दे दी गयी और बाकियों को जेल में बंद कर दिया गया. इससे लोगो में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह और तेज हो गया.
(ii) अंग्रेजो दुवारा जबरन भारतीयों नोजवानो को सेना में भर्ती करना.
(iii) मुलभुत आवश्यकता की वस्तुओं पर अधिक कर लगा कर वस्तुओं की कीमत बढ़ा देना.
(iv) रोलेट एक्ट – रोलेट एक्ट के तहत पुलिस को किसी भी नागरिक को बिना वार्रेंट के गिरफ्तार करने, नजरबंद करने और तलाशी लेने के पुरे अधिकार दे दिए गये थे. अदालतों में पेरवी नही कर सकते थे इसका साफ़ मतलब यही था की अंग्रेजो के खिलाफ कोई भी आवाज़ नहीं उठा पाए और यह साफ़-साफ़ व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन था.
6 फरवरी 1919 को रोलेट बिल नाम के दो बिलों को बड़े काउंसिल में पास करने के लिए पेश किया गया. 24 फरवरी के गांधीजी ने एलान किया की अगर बिलों को पास कर दिया गया तो सरे देश में सत्याग्रह होगा. 30 मार्च 1919 को रोलेट बिल के विरोध में देश व्यापी योजना बनाई गयी लेकिन इस हड़ताल की तारीख बढ़ा कर 6 अप्रेल कर दी गयी. लेकिन दिल्ली खबर नही पहुचने की वजह से 30 मार्च 1919 को हड़ताल हुई. लेकिन इसी बीच रोलेट एक्ट का पहला बिल मार्च के पहले सप्ताह में पास कर दिया गया. पुरे देश भर में हर जगह हड़ताल हुई.
गाँधी जी की गिरफ्तारी (Gandhi ji ki Giraphtaaree)-
9 अप्रेल रामनवमी के दिन हिन्दू, मुसलमानों ने जुलुस निकाला गया इसी बीच गाँधी जी भी पंजाब आना चाहते थे लेकिन पलवल स्टेशन पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और वापस मुंबई भेज दिया गया. नेताओ की गिरफ्तारी से पंजाब में और तनाव का माहोल पैदा हो गया यह देख अंग्रेजो के हाथ पांव फूलने लगे तो उन्होंने पंजाब के अमृतसर शहर को सेना के हाथो में सोप दिया. सेना का मुख्य ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर था.
जलियांवाला हत्याकांड से पहले अंग्रेज़ों के अत्याचार (Jallianwala Bagh Hatyakand se Pahle Angrejon ke Atyaachaar)-
11 अप्रेल को अमृतसर के लोगो ने हड़ताल की और जुलुस निकाला 12 अप्रेल को अमृतसर शहर को सेना ने पूरी तरह से घेर लिया. ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने हवाईजहाज से पुरे अमृतसर की स्थति का पता लगाया और हर गली में सेना का मार्च कराया गया ताकि जनता में भय फैल जाये और वो किसी प्रकार की कोई हड़ताल ना करे.
और 12 अप्रेल को ही हड़ताल में शामिल होने वाले मुख्य नेताओ को गिरफ्तार करके रामबाग ले जाया गया और वह पर उन्हें पेड़ो से बांध दिया गया और निगरानी के लिए गोरखा सेना को वहा पर तैनात कर दिया गया. बाद में आंदोलन के दो नेताओं सत्यपाल और सैफ़ुद्दीन किचलू को गिरफ्तार कर कालापानी की सजा दे दी गई.
10 अप्रैल 1919 को अमृतसर के उप कमिश्नर के घर के आगे लोगो ने नारे लगाने शुरु कर दिए इस विद्रोह के माहोल को देख कर अंग्रेजो ने हड़ताल कर रहे लोगो पर गोलिया चलवा दी जिससे माहोल और बिगड़ गया और हर जगह लूटपाट चालू हो गयी. इस गोलाबारी में 10 से 15 लोगो की मृत्यु हो गयी थी.
जलियांवाला बाग हत्याकांड का दिन (Jallianwala Bagh Hatyakand ka Din)-
13 अप्रेल 1919 बैशाखी का दिन था, उस समय अमृतसर शहर में बैशाख का त्यौहार जोर शोर से मनाया जाता था इसलिए आस-पास के गाँवो के लोगो भी अमृतसर आने लगे. बैशाखी के मेले में भाग लेने आये इन लोगो ने अपना डेरा जलियांवाला बाग में जमा रखा था. इसी दिन जनरल डायर ने ये एलान करवाया था की शहर में किसी प्रकार का कोई जमावड़ा और मीटिंग नही होनी चाहिए.
लेकिन यह एलान सब लोगो तक पहुचा नही था. जलियांवाला बाग में गिरफ्तार हुए नेताओ की रिहाई के लिए एक मीटिंग का आयोजन किया गया. बैशाखी मनाने आये लोगो ने मीटिंग को देख कर कोतुहल वश वहां पर एकत्रित होना शुरु कर दिया.
शाम के करीब 4.30 बजे थे उस वक्त तक जलियांवाला बाग में 10000 हजार के लगभग लोग जमा हो गये थे, जिसमे बच्चे, बूढ़े, ओरते और जवान सभी शामिल थे. वहा के माहोल गर्मा रहा था लोगो का तनाव अपनी चरम सीमा पर था.
इस सभा में भाषण दिया जा रहा था की रोलेट एक्ट (काला कानून) वापस लिया जाये और 10 अप्रेल को हुए गोलीकांड की निंदा भी की गयी साथ ही गिरफ्तार हुए मुख्य नेता डॉ. सत्यपाल और डॉ. सैफ़ुद्दीन किचलू को रिहा करने की मांग रखी गयी. सभा अपने चरम पर थी तभी जनरल डायर अपनी फोज के साथ जलियांवाला बाग के एकमात्र दरवाजे पर आ धमका, जलियांवाला बाग के चारो तरफ ऊँची-ऊँची दीवारे थी
और एक ही रास्ता था जिस आया जाया जा सकता था. इसी दरवाजे पर सेना के लोगो ने अपनी बंदूक तान कर खड़े हो गये तभी जनरल डायर ने आर्डर दिया सभी लोगो को गोलियों से भुन दिया जाये. सेनिको ने गोलिया चलानी चालू कर दी.
तभी लोग जलियांवाला बाग के मुख्य दरवाजे की तरफ भी भागे लेकिन गोलियों के आगे टिक नही पाए कुछ लोगो ने दीवारों को फांदकर जाने की कोशिश की लेकिन न कामयाब रहे और जलियांवाला बाग के अंदर के कुआं भी था कुछ लोग जान बचाने के लिए उस कुए में कूद गए
लेकिन कुआं गहरा होने के कारण वो बच नही पाए. करीब 10 मिनट तक मोंत का नंगा नाच होता रहा. इस हत्याकांड में लगभग 1650 राउंड गोलियां चलाई गई अंत में सेनिको की गोलिया समाप्त हो गयी तो जनरल डायर ने सोचा यह सबक काफी यह इसलिए वो वह से चले गये.
जलियांवाला बाग हत्याकांड में करीब 1000 मासूम और निहते लोग मारे गये लेकिन यह आकड़ा सही नही बल्कि इससे कही ज्यादा लोग इस हत्याकांड में मारे गये थे.
जलियांवाला बाग हत्याकांड में कितने लोग मरे गये –
जलियांवाला बाग हत्याकांड में अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय के अनुसार में 484 शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है लेकिन लोगो कहना है की 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए.
ब्रिटिश हुकूमत के अनुसार इस हत्याकांड में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते है जिनमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग लड़के और एक 6-सप्ताह का बच्चा था.
जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद क्या हुआ –
तब रतन देवी जलियांवाला बाग में अपनों को खोजते हुए वहा पहुंची और रात भर रतन देवी लोगो को दम तोड़ते हुए देखती रही. शहर में कर्फु लेगे होने के कारण कोई भी यहाँ तक नहीं पहुच पाया था. और सुबह होते ही लाशों का ढेर लगा था. इस करुर हत्याकांड के बाद भी सरकार ने घायलों के लिए कोई इंतजाम नही किया था.
मारे जाने वालो में छोटी उम्र के बच्चे भी थे कुछ आँखों में गोली लगी थी तो कुछ की बाँहों में. गुरु रविंदरनाथ टैगोर ने अपनी सर की उपाधि का त्याग कर दिया, उन्होंने कहा की अब वो समय आ गया है की जब सम्मान पदक शर्म पदक लग रहे है.
जलियांवाला बाग हत्याकांड का शहीद भगतसिंह पर असर –
भगतसिंह एक क्रांतिकारी परिवार से थे जिस कारण उनमे देशभक्ति कूट-कूट के भरी थी. दुसरे दिन जब भगतसिंह अपने विधालय से लोट रहे थे तब उन्हें पता चला की जलियांवाला बाग में अंग्रेजो ने लोगो की गोली मारकर हत्या कर दी है तो उनसे रहा नही गया और
वे वहा से 12 किलोमीटर पैदल चल कर जलियांवाला बाग पहुचे और जो उन्होंने वहा देखा उससे देख कर उन्हें बहुत आघात पहुचा और उनकी देश प्रेम की भावना और बढ़ गयी. इसलिए उन्होंने वह की मिट्टी अपने लगायी थी और मात्र 23 साल की उम्र में देश के लिए शहीद हो गये थे.
मार्शल लॉ लागु करना –
इतना सब कुछ होने के बावजूद भी जनरल डायर ने अपना दमन चक्र जारी रखा और लोगो को जलील करने के नए-नए तरीके अपनाता रहा. जनरल डायर एक हुकुम जारी किया दंगो के दोरान मिस मारसेला शेरवुड को कुचातेवारिया में लोगो ने पिटा था और उन्हें पेट के बल रेंगने को मजबूर किया अब जो भी भारतीय कुचातेवारिया से गुजरे तो उसे पेट के बाल रेंगते हुए जाना होंगा.
लेकिन जनरल डायर ने इस बात का ख्याल नही किया की मिस मारसेला शेरवुड को एक भारतीय परिवार ने ही शरण दी थी. पुरे पंजाब में मार्शल लॉ लागु कर दिया गया पंजाब की खबरे बाहर जाने पर रोक लगा दी गयी और यही वजह थी की जलियांवाला हत्याकांड की खबर कांग्रेस को काफी समय बाद पता चली. इस खबर के पुरे भारत में फैलते ही भारतीयों के मन दुःख, ग्लानी और आक्रोश से भर गये.
हंटर जाँच समिती का गठन (Hantar Jaanch Samiti ka Gathan)-
जनरल डायर की मनमानी करतूतों के कारण पुरे पंजाब में विद्रोह भड़क उठा और इसी के साथ तसुर, गुजरावाला और लाहोर में भी विद्रोह की आग भड़क उठी. ये सब देखकर ब्रिटिश हुकुमत ने जलियांवाला हत्याकांड के छ: महीने बाद अक्टूबर 1919 में हंटर जाँच समिती नयुक्त की जिसको जलियांवाला बाग में हुए हत्याकांड की जाँच करनी थी इस जाँच समिती में विलियम हंटर, जस्टिस जार्ज रैकन और चिमनलाल सीतलवाड़ शामिल थे.
19 नवम्बर 1919 को जनरल डायर आयोग के सामने पेश हुआ और अपने अपराधो को सही ठहराता रहा.. लेकिन समिती में अंग्रजो के लोग होने के कारण लिपा पोती करती रही जनरल डायर के दोषी होने पर भी कोई सजा नही दी गयी, बस दो साल पहले रिटायर कर के ब्रिटेन भेज दिया गया. लेकिन कांग्रेस ने पंजाब की घटनाओ की सही जानकारी लेने के लिए अपनी एक समिती नयुक्त की जिसके मुख्य सदस्य –
सर्व श्री मदनमोहन मालवीय, महात्मा गाँधी , देश बंधु चित्रन्दन दास, मोतीलाल नेहरु, बदरूद्दीन तैयब जी और जयकर इस समिती ने तीन महीनों तक पंजाब की घटनाओ का अध्यन किया और समिती ने पंजाब के परशाशको की घोर निंदा की प्रमुख रूप से पंजाब के गवर्नर माइकल ओडायर और सेना के जनरल डायर की.
हंटर जाँच समिती के जनरल डायर से सवाल – जवाब :-
हंटर जाँच समिती – आप जब जलियांवाला बाग पहुचे तो आप ने क्या किया ?
जनरल डायर – मैंने सिपाहियों को गोली चलाने का हुकुम दिया.
हंटर जाँच समिती – क्या ये आदेश आप ने वहा जाते ही दिया ?
जनरल डायर – हाँ, मैंने पहुंचते ही गोली चलाने का आदेश दिया.
हंटर जाँच समिती – क्या चेतावनी नहीं दी थी ?
जनरल डायर – नहीं, क्योंकी हमारे सुबह के ऐलान के बावजूद भी लोग जलियांवाला बाग में इकट्ठे हुए थे. उन्हें कोई भी सभा करने से मना कर दिया गया था, वैसे उन्हें मेरे आने की चेतावनी तो मिल ही गयी होगी.
हंटर जाँच समिती – फिर गोली चलाने का क्या मकसद था ?
जनरल डायर – मेरा मक्सद गोली चलाकर भीड़ को तीतर-बीतर करना नही था, मै चाहता था इस तरह की गोलीबारी के बाद पुरे पंजाब के लोगो में ऐसा डर बेठ जाये कि दुबारा ऐसा करने की हिम्मत ही ना हो
जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला –
जब यह हत्याकांड हो रहा था तब उधमसिंह भी वही मोजूद थे वे भी गोली लगने के कारण घायल हो गये थे. इस हत्याकांड का उन पर इतना असर हुआ की उन्होंने जनरल डायर को मारने की रणनीति बनानी शुरु कर दी और वो इसमे सफल भी हुए, लेकिन उन्होंने जनरल डायर की जगह माइकल ओ ड्वायर हत्या कर दी.
13 मार्च 1940 को उन्होंने लंदन के कैक्सटन हॉल में इस घटना के समय ब्रिटिश लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर माइकल ओ ड्वायर को गोली चला के मार डाला. इसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 31 जुलाई 1940 को उधमसिंह को फाँसी दे दी गयी.
जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद कांग्रेस का अधिवेशन –
कांग्रेस का दिसम्बर अधिवेशन 1919 में पहले से ही अमृतसर में होना निश्चित हुआ था और वही हुआ. इस अधिवेशन में कुछ सदस्यों में जलियांवाला बाग के हत्याकांड के खिलाफ जबरदस्त आवाज उठाई. जलियांवाला बाग के हत्याकांड और अंग्रजो के दमन पूर्ण रव्या देखते है गांधीजी ने कहा ये शेतानो को राज है और इन से न्याय की उम्मीद नही की जा सकती.
इससे पहले गांधीजी ब्रिटिश सरकार के सहयोग से आजादी हासिल करने का प्रयतन कर रहे थे पर इस घटना के बाद उनकी सोच बदली और उन्होंने असहयोग आंदोनल चलाया.
जलियांवाला बाग के बारे में रोचक जानकारी –
शहीदी लाट – शहीदी लाट को 1951 में स्थापित गया. 19 जुलाई 1974 को शहीद उधम सिंह की अस्थियां भारत लायी गई और अस्थि कलश को बाग में स्थापित किया गया.
शहीदी कुआं – इस कुएं में लोग गोलियों से बचने के लिए कूदे थे, आखिर में कुआ लाशों से भर गया, नरसंहार के बाद 120 लाशे इस कुए से निकाली गयी थी.
जलियांवाला बाग हत्याकांड के 15 दिन बाद भगतसिंह लाहोर से अमृतसर पहुंचे थे और खून से सनी मिट्टी बोतल में भरकर ले गए थे.
1919 में जलियांवाला बाग डंपिंग ग्राउंड होता था. यह जमीन हरमीत सिंह जल्ला वालियां की मिलिक्यत थी 1951 में शहीदी लाट का उद्घाटन किया गया और इसका नाम बदलकर जलियांवाला बाग कर दिया गया.
जलियांवाला बाग हत्याकांड के बारे में यह जानकारी आपको कैसी लगी अगर आपका कोई सवाल या सुझाव हो तो हमें कमेंट करके बताएं
पहले तो मैं जो जलियांवाला बाग हत्याकांड में जो शहीद हुए थे उनको कोटि-कोटि नमन करता हूं और आपसे हाथ जोड़कर नम्र निवेदन करता हूं की उस समय कितने लोग शहीद हुए थे उनके नामों की सूची और देने के बारे में आपसे गुजारिश करता हूं ताकि लोगों को पता चले जो शहीद हुए थे उनकी यह नाम है और मैंने शहीदों के नाम से एक पेज बना रखा है फेसबुक पर भारत के अमर शहीदों की आत्मकथा जय हिंद जय भारत शहीदों को कोटि कोटि नमन में शहीद भगत सिंह ब्रिगेड समाज सुधार समिति से जुड़ा हुआ हूं मेरा मकसद देश को आजादी कैसे मिली उन शहीदों की आत्मकथा लोगों को बताना चाहता हूं और बच्चे बच्चे में देश भक्ति का संचार करने का मेरा मकसद है जय हिंद वंदे मातरम
राजकुमार चाहर जी, हिंदीयात्रा की पूरी टीम शहीदो को कोटि-कोटि नमन करती है, आप ने जो मुहीम छेड़ी है वो बहुत अच्छी है हम जल्द ही जलियांवाला बाग हत्याकांड में शहीद हुए शहीदो की सूची अमृतसर डिप्टी कमिश्नर कार्यालय से लेकर पोस्ट में डालेंगे, धन्यवाद. जय हिंद, वंदे मातरम
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